मंगलवार, 31 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 -अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






निः स्पृह

अधिकार पाकर कोई, निः स्पृह कैसे कोय।

जिमि श्रृंगार  प्रेमी नर, अकाम  नाही होय।।1।।

द्वेष

मूरख द्वेष सदा बुध सो, रंक  धनी  से  मान।

परांगना   कुलीना   सो, विधवा सधवा जान।।2।।

रक्षण

धन से रक्षित  धर्म होय, योग से रक्षित ज्ञान।

भली नारि से घर रक्षित, मृदुता   से  श्रीमान।।3।।


--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

सोमवार, 30 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






त्यागना

विद्याहीन गुरू त्याग, बंधु त्याग बिनु प्रीति।

देश काल भी त्यागिए, जँह कोई नहि नीति ।।1।।

जुड़वाँ भ्राता

जुड़वाँ भ्राता भले ही, गुण में नहीं समान ।

जैसे  कांटा  अरु बेर, गुण में हैं असमान ।।2।।

लक्ष्मी

न दंपति में लड़ाई हो , न मूर्ख पूजा जाय।

घर में कुछ संचय होय, लक्ष्मी दौड़ी आय।।3।।

-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

रविवार, 29 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






पाप

हिय में जिसके पाप हो, तीरथ गये न शुद्ध।

मदिरा घट तपाये से, फिर भी रहे अशुद्ध।। 

मान

वृक्ष  एक  के  पुष्पों से , विपिन सुवासित जान।

वैसे  हि  सु   संतान  से, कुल का जग में  मान।।

सफलता का मंत्र

चुप से मिटे कलह सदा,  दरिद्रता       उद्योग।

जाग्रत का ही भय मिटे, यह जानत सब लोग।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


शुक्रवार, 27 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 









प्रकृति 

हो धीरज  वाणी उचित, या  उदारता   ज्ञान।

इनको मानो सहज गुण, नहि उपदेशन भान।।

शिष्टाचार

लघुता में गुरूता छिपी, गुरूता को लघु जान।

पहले   बोले    भेंट   में, उसमें   गुरूता   मान।।

दुर्जन

दुर्जन  को  शिक्षा दिये, कबहुँ न सज्जन कोय।

जिमि जड़ सींचे दूध से, नीम  न   मीठी   होय।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

गुरुवार, 26 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र








धनवान

सद्विद्या   हो   पास   में, धनी उसे ही जान।

अपयश का जीवन सदा,मानो मृत्यु समान।।1।।

दुर्जन

होय तक्षक विष  दंत में, वृश्चिक पूंछहि संग।

मधुमक्खी  सिर जानिये, दुर्जन  सारे   अंग।।2।।

अनर्थ 

यौवन धन-संपत्ति हो,प्रभुता अरु अविवेक।

चारो होंय एक  साथ, अनर्थ  होंय   अनेक।।3।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।





शुक्रवार, 20 मई 2022

जागो जागो धरा सपूतो

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






जागो   जागो   धरा    सपूतो,

तू मानवता  पुजारी बन जाये।

हिंसा पर अहिंसा  विजयी हो,

ऐसे  दिग्विजयी  तू  बन जाये ।।


जो  कोई  दिखे   दिग्भ्रमित,

अहिंसा  संदेश  देता   जाये।

मानवता सदा उर में रखकर,

मानवता पुजारी तू बन जाये।।


 धधके  ज्वाला आतंक कहीं,

तू  अहिंसा   मेघ  बन  जाये।

इतना  बरसो  झूम  के बरसो,

आतंकी ज्वाला ठंडी हो जाये।।


-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©



रविवार, 15 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र







चरित्रहीन व्यक्ति पालन, मूर्ख शिष्य को ज्ञान ।

इनको    सदैव  त्यागिये , यदि  चाहो  उत्थान।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।




लगा जेठ अब चले लुआरा

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 







लगा जेठ अब चले लुआरा,

दिनपति बरसाये  अंगारा।

रथ दिनपति  जब निकला,

मारूत भी भयभीत छिपा।।


मानो अनुशासित सैनिक ,

हिलना डुलना बन्द हुआ ।

मारूत मीत पीपल पात,

दिनपति देते सलामी  हैं।


श्वान  बेचारे  जीभ  निकाले,

पशु  पक्षी  भी बेहाल  दिखें।

मयूर  नर्तन अब  नाहि दिखे,

वे   भी  अब  बेहाल   दिखें।।


- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©




मंगलवार, 10 मई 2022

दोहे रिश्ते पर

 --अशर्फी लाल मिश्र


अशर्फी लाल मिश्र 






रिश्ते

गरीबी  में अपने भी, रिश्ते  जाते   टूट ।

अमीरी देख ढूंढ़ कर, रिश्ते बनते अटूट।।


-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

बुधवार, 4 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






पवन 

शीतल मंद पवन सदा, सब को अधिक सुहाय ।

वही पवन अति वेग से , नहि काहू मन भाय।।1।।

भाषा 

गरम बात से खिन्न मन, गरम वात से गात ।

दोनों से तन मन दुखी , दिन होये या रात।।2।।

अपनों के मध्य

पशु पक्षी भी खुश होयें, पाकर अपना झुण्ड ।

जो खुश होता नहि दिखे , वह हैं शिला खण्ड।।3।।


- अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...