शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

दोहे शरद पूर्णिमा पर

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







मास क्वांर की पूर्णिमा, और शरद ऋतु जान।

राकापति  को  जानिये,रजनी  की   है   शान।।1।।


निशि  रुपहली  साड़ी   में, थिरके सारी रात।

निशिपति भी सम्मुख  रहे , होय न कोई बात।।2।।


चाँद केलि करता रहा,रजनी  सारी  रात।

भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात।।3।।


निशा निशिपति साथ रहे,तब तक उडगन साथ।

आता     ऊषा    देखकर, मनु निशि हुई अनाथ।।4।।


लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©




गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

विप्र सुदामा - 28

 -- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







दर  दर  पूंछ  रहे  हैं  सुदामा,

कहाँ  चली  गई  मेरी  छानी।

इसी  जगह  थी  मेरी   छानी,  

अब नाहि दिखती मेरी छानी।।


अब  बैठ  गये थे  भूमि विप्र, 

व्याकुल  थे  अति   मन   में।

कहाँ  मैं  खोजूँ   प्राण  प्रिये,

कैसे   जीना  होगा   जग  में ।।


निराश मन चल  पड़े  सुदामा, 

कहां गई मेरी प्यारी  सुशीला।

विप्र  मन  में  कर  रहे  विचार,

न अब  बच्चे  न  ही  सुशीला।।


सुदामा  नयन थे अश्रु पूरित,

कंठ  भी  था  अब  अवरुद्ध।

प्यारे  बच्चे  अब  न   मिलेंगे,

पत्नी  सुशीला   कैसी  होगी।।


 वातायन  से जब  दृष्टि पड़ी,

प्रियतम   खड़े   बीच   गली। 

नाथ  यही  है भवन  तुम्हारा,

कुटी जगह  है  महल  न्यारा।।

-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

रविवार, 22 अक्तूबर 2023

विप्र सुदामा - 27

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर ।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







पथ गुजर  रहा  बीहड़ से,

बीहड़ में था दस्यु निवास।

सुदामा चल  रहे  तेजी से। 

कब पहुँचे निजी  निवास।।


मन में  विप्र  विचार करें, 

 मित्र  कीन्ह बड़ी भलाई। 

बार  बार  धन्यवाद  करें, 

भले  नाहीं  दीन्ह  बिदाई।।


चलत चलत  पहुँचे विप्र,

स्व नगरी पुरी सुदामा में।

छानी छाई जँह विप्र की, 

जगह बदल गई महल में।।


पास  सरोवर  था  उसके,

नील  कमल  थे   जिसमें । 

निर्मल  जल  सरोवर  का,

समुदाय  हंस   था   उसमें।।


चकमक  खड़े  सुदामा  थे,

खोज रहे  निज छानी  को।

हर  कोई   से  पूँछ  रहे  थे,

व्याकुल थे  निज छानी को।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©




सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

दोहे राजनीति पर

 -- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







राजनीति शतरंज सी ,जिसमे रहती घात।

कोई दे शह किसी को, कोई  करता मात।।


आज नहि समाज सेवा,नाही दिखता  त्याग।

हर  कोइ  गुमराह   करे, पद को भागम भाग।।


वोट  चाहें  जनता का, लालच   देंय  अनेक।

वादा  मुफ्त रिवड़ी का, टका   न  लागे  एक।।


जातिवाद  मुखर  होये , जब जब होय चुनाव।

निर्धन की नहि बात हो , ढूंढे    जातिय   नाव।।


लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©



बुधवार, 11 अक्तूबर 2023

विप्र सुदामा - 26

 -- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)






दस्यु दल था आज अचंभित,

पाया पथिक को खाली हाथ।

पथिक आ  रहा   द्वारिका  से,

कुछ भी नहीं था उसके साथ।।


अब   चल  रहे  सुदामा थे,

निर्जन  पथ  पर  धीरे धीरे। 

कुछ  दूर  चले   विप्र अभी,

सिंह आ  पहुंचा  धीरे  धीरे।।


 पथिक   विप्र   देख  सिंह, 

मुड़ गया सघन कानन को।

तत्व   ज्ञानी   विप्र  सुदामा,

निर्भय जा रहे निज घर को।।


चलते चलते आ गई तटिनी 

थी  मदमाती  स्व  यौवन से 

विप्र  सुदामा  थे   कर  जोड़े

कदम  रख   रहे   संयम   से 


विप्र कदम अब तटिनी  जल, 

तटिनी  जल   था   पद   तल।

ब्रह्म   ज्ञानी      विप्र   सुदामा,

सहज  पार   थे  तटिनी  जल।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

विप्र सुदामा - 25

 -- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)






हृदय से आभार प्रकट कर,

चल पड़े विप्र स्व नगरी को।

नगरवासी  नगर  द्वार  तक,

गये   थे  भेज  सुदामा   को।।


तत्व ज्ञानी विप्र सुदामा,

 धीरे  धीरे  थे  जा  रहे।

खाली  हाथ  आये विप्र,

खाली  हाथ  ही जा  रहे।।


बीहड़  से  पथ  गुजर रहा, 

आ धमके दस्यु  इसी बीच।

ठहर  पथिक अपनी जगह,

अरु लट्ठ उठाया इसी बीच।।


ली गई तलाशी सुदामा की,

पास निकला कुछ भी नहीँ।

तत्व ज्ञानी  ब्राह्मण  सुदामा,

धन का था वह लोभी  नहीँ।।


सुदामा  खड़े  थे  कर  जोड़े,

सदा  धन   मेरा  ब्रह्म  ज्ञान।

भिक्षाटन कर  भोजन  सदा,

नित  करता  हूँ  ब्रह्म   ध्यान।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर।©


गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

नीति के दोहे मुक्तक

 -- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)






राजनीति 

जातिवाद है बढ़ रहा ,राजनीति के संग।

नेता हैं अब  कर रहे ,समरसता को भंग।। 

समरसता  चिन्ता नहीं, सत्ता  की  है  भूख।

समाज  में  खाई  बढ़े ,  चाहें  जाति रसूख।।

ज्ञान

ज्ञान उसे  मत  दीजिये,जो नहि  ग्राहक होय।

जिमि वर्षा मरु भूमि में,तृण  उपजे नहि कोय।।

ईर्ष्या 

ईर्ष्या बसे  पड़ोस  में, राहु केतु सम जान।

या फिर बसे रिश्तों में, दूरी   में   कल्यान।।

--लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...