-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) |
मास क्वांर की पूर्णिमा, और शरद ऋतु जान।
राकापति को जानिये,रजनी की है शान।।1।।
निशि रुपहली साड़ी में, थिरके सारी रात।
निशिपति भी सम्मुख रहे , होय न कोई बात।।2।।
चाँद केलि करता रहा,रजनी सारी रात।
भय से पीला हो गया, दिनकर देखे प्रात।।3।।
निशा निशिपति साथ रहे,तब तक उडगन साथ।
आता ऊषा देखकर, मनु निशि हुई अनाथ।।4।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आपका ।
हटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंअच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
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