शुक्रवार, 28 मई 2021

पीत पात झरते सदा

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 










पीत  पात   झरते  सदा,
हरित  पात  यदा  कदा। 
जीवन मरण सत्य सदा,
उत्थान पतन क्रम सदा।।

पतिव्रता  के  पुण्य  से ,
भाग्य खुले सदा  सदा। 
पूर्वजों  के पुण्य   से ही,
पड़ोसी मित्र मिले सदा।।

© कवि : अशर्फी लाल मिश्र, रूरा ,कानपुर। 


गुरुवार, 20 मई 2021

हम हारे तुम जीते गुसैयां (भजन)

  © अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






हम हारे तुम जीते गुसैयां,

अब काहे की टेक,नाथ काहे की टेक।


रात दिवस हम पुकार रहे,

तब भी दरश नाहीं गुसैयां।


पुकारत पुकारत छाले जीभ,

अब  तो  दरश  देव  गुसैयां।


हम हर विधि आज अनाथ,

आपहिं  नाथ हमारे गुसैयां।


रात  दिवस अपलक  निहारूँ,

किस क्षण आवें हमारे गुसैयां।


आपहिं जनक आपहिं जननी,

आपहिं  गुरुवर   मेरे   गुसैयां।


जग में  है  सब  कुछ  झूँठा ,

आपहिं  एक  सत्य  गुसैयां।


इस  पातक  को नाथ उबारो,

दीजै    शरण   मेरे    गुसैयां।

©अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर,कानपुर।

शनिवार, 8 मई 2021

इंसान में इंसानियत मरती दिखे(गजल)

 द्वारा:अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र





कोरोना  की   आई  दूसरी   लहर,

इंसान में  इंसानियत  मरती दिखै।

बेटा  था  जो   कलेजे  का टुकड़ा,

आज वह भी पलायन करता दिखे।।


डॉक्टर नर्सें  मानवता की मूर्ति,

आज वह भी दूरी बनाते  दिखें।

जीवन  रक्षक   दवाएं  जो  थीं,

काला बाजारी में बिकती दिखें।।


कोरोना मरीज ,ऑक्सीजन स्तर,

कम   होकर   दम  घुटता  दिखे।

ऑक्सीजन की आज ऐसी कमी,

मरघट  पर  पंक्ति शवों की दिखे।।


कोरोना लहर,   जान   जोखिम,

उसमें भी कुछ को अवसर दिखे।

कोरोना  की  आई  दूसरी  लहर,

इंसान में इंसानियत मरती दिखे।।


कवि:अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर,कानपुर।




विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...