गुरुवार, 20 मई 2021

हम हारे तुम जीते गुसैयां (भजन)

  © अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






हम हारे तुम जीते गुसैयां,

अब काहे की टेक,नाथ काहे की टेक।


रात दिवस हम पुकार रहे,

तब भी दरश नाहीं गुसैयां।


पुकारत पुकारत छाले जीभ,

अब  तो  दरश  देव  गुसैयां।


हम हर विधि आज अनाथ,

आपहिं  नाथ हमारे गुसैयां।


रात  दिवस अपलक  निहारूँ,

किस क्षण आवें हमारे गुसैयां।


आपहिं जनक आपहिं जननी,

आपहिं  गुरुवर   मेरे   गुसैयां।


जग में  है  सब  कुछ  झूँठा ,

आपहिं  एक  सत्य  गुसैयां।


इस  पातक  को नाथ उबारो,

दीजै    शरण   मेरे    गुसैयां।

©अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर,कानपुर।

14 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. बहुत सुंदर भजन

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें

    जवाब देंहटाएं

विप्र सुदामा - 56

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) भामा मुख  से जब  सूना, दर्शन  करना हो वीतरागी। या तीर्थयात्रा पर हो ...