द्वारा:अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
कोरोना की आई दूसरी लहर,
इंसान में इंसानियत मरती दिखै।
बेटा था जो कलेजे का टुकड़ा,
आज वह भी पलायन करता दिखे।।
डॉक्टर नर्सें मानवता की मूर्ति,
आज वह भी दूरी बनाते दिखें।
जीवन रक्षक दवाएं जो थीं,
काला बाजारी में बिकती दिखें।।
कोरोना मरीज ,ऑक्सीजन स्तर,
कम होकर दम घुटता दिखे।
ऑक्सीजन की आज ऐसी कमी,
मरघट पर पंक्ति शवों की दिखे।।
कोरोना लहर, जान जोखिम,
उसमें भी कुछ को अवसर दिखे।
कोरोना की आई दूसरी लहर,
इंसान में इंसानियत मरती दिखे।।
कवि:अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर,कानपुर।
हृदयस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।धन्यवाद।
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