रविवार, 28 अगस्त 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






भ्रम

स्वर्ण मृग था कहीं नहीं, भ्रम  में  भटके राम।

जो भी नर भ्रम में पड़ा, बिगड़ा उसका काम।।


-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

रविवार, 21 अगस्त 2022

नीति के दोहे

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






विनय 

मैं हूँ अधम खल कामी, करुवे    मेरे    बोल।

नाथ कर दो  मम वाणी, मीठी अरु अनमोल ।।

-- लेखक एवं रचनाकार - अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।©

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

नीति के दोहे मुक्तक

-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






प्रेम 

प्रेम हिये की अनुभूति, नहि चाहे प्रतिदान।

होय चाह प्रतिदान की, उसे वासना जान ।।1।।

स्नेह

नेह   निकटता   से   बढ़े, दूरी  से  हो   दूर।

पशु पक्षी भी होंय निकट, मिले नेह भरपूर।।2।।


-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

बुधवार, 17 अगस्त 2022

मुझ में कभी जवानी थी

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






सूखा पेड़ आम का कहता,

मुझ में कभी जवानी थी।

तन पर हरी चादर लिपटी,

मोहक  अदा  हमारी   थी।।

पास  खड़े  थे कई साथी,

भव्य दिखती अमराई थी।

उन्नत  उरोज  रसाल देख, 

सब के मन में लालसा थी।।

'लाल' की लालसा एक रही,

पक्व   रसाल  हो  हाथों  में,

मुँह  लगा कर जी भर खाऊं।

भाग्य     सराहूँ   जीवन   में ।।

-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©



गुरुवार, 11 अगस्त 2022

आजादी का अमृत महोत्सव - देशभक्ति गीत

 - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर, देहात।

अशर्फी लाल मिश्र







तिरंगा





हर      हाथ    तिरंगा,

हर   घर   में   तिरंगा।

भारत  की है  शान तिरंगा,

भारत की पहिचान तिरंगा।।

प्रतीक शक्ति  का आज  तिरंगा,

विकास का मानक बना  तिरंगा।

रूस - यूक्रेन   के   युद्ध   समय,

प्राणों   का  रक्षक  बना  तिरंगा।।

आजादी के  शूर शहीदों का,

सम्मान  देता  आज  तिरंगा।

चांद    होय   या   मंगलयान,

लहराये शान से आज तिरंगा।।

भुखमरी  होय  या   महामारी,

प्राणो का  रक्षक  बना तिरंगा।

अमृत   महोत्सव   भारत  में।

सम्मान का पर्याय बना तिरंगा ।।

लेखक एवं रचनाकार - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर देहात।


 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

बढ़ रहा पथिक निर्जन पथ पर

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र

बढ़ रहा पथिक निर्जन पथ पर,

उसका   कोई    गंतव्य   नहीं ।

उमड़   घुमड़  उठ  रहे विचार,

पर   उनका    कोई  अंत नहीं।।

कभी   कदम  तेजी   से  बढ़ते,

पर  थमने  का  लेते  नाम नहीं।

अब  पथ  गुजर  रहा  बीहड़ से,

सिंह  हटने का  लेता  नाम नहीं।।

देखा  साहस  पथिक का ज्योंही,

हट गया पथ से मनु बनराज नहीं।

बढ़  रहा पथिक  निर्जन  पथ पर,

उसका    कोई     गंतव्य    नहीं।।

-  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर , कानपुर।©



गुरुवार, 4 अगस्त 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 - अशर्फी लाल, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र






कंचन 

अधिक आयु का मूल्य नहि, कंचन में गुण जान।

शब्दों    के   गठजोड़   का, कहीं न  होता मान।।1।।

वाणी 

वेश वसन  से  संत नहि, नहि कोई विद्वान।

दिखें काक पिक एक से, वाणी से पहिचान।।2।।

- लेखक रचनाकार -अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। ©

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...