गुरुवार, 4 अगस्त 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 - अशर्फी लाल, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र






कंचन 

अधिक आयु का मूल्य नहि, कंचन में गुण जान।

शब्दों    के   गठजोड़   का, कहीं न  होता मान।।1।।

वाणी 

वेश वसन  से  संत नहि, नहि कोई विद्वान।

दिखें काक पिक एक से, वाणी से पहिचान।।2।।

- लेखक रचनाकार -अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। ©

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...