रविवार, 19 सितंबर 2021

बात बराबरी की

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






छोटा कद होय पति का ,पत्नी लम्बी होय। 

कितनी सुंदर होय छवि ,जोड़ी फबै न सोय।।


पति से हो अधिक शिक्षा,धनी मायका होय।

छोटा कद होय पति का,जोड़ी फबै न सोय।।


 © कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। 

 

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

नीति के दोहे मुक्तक

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 






मित्र 

मिले अचानक मीत  यदि, हर्षित नाहीं नैन। 

त्यागहु   ऐसे   मीत  को ,याही में सुख चैन।।


©कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर,कानपुर। 

नीति के दोहे मुक्तक

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 
राजनीति 
अपराधी   गले   माला ,राजनीति  के   संग।
पुलिस जिसकी तलाश में ,अब वही रक्षक संग।।
काला धन होय सफ़ेद ,राजनीति के संग। 
साथी सब  नेता  कहें ,शत्रु रह जायें दंग।।
साक्षर होय  केवल वह , अशिष्ट भाषा होय। 
काला धन हो पास में, मंत्री बनता सोय।।

©कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर। 




बुधवार, 8 सितंबर 2021

हरतालिका गीत

        ॐ 

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 






हरितालिका व्रत के अवसर पर





शैलजा  कीन्हा  कठिन  व्रत,

बहु  काल  बीता  करते  व्रत। 

था भादौं मास  रैन  उजियारी,

तृतीया तिथि अनुपम न्यारी।।

सम्मुख  खड़े  थे  भोले आज,

मांगो  इच्छित  वरदान आज। 

आप के  दर्शन  मेरा सौभाग्य ,

दया  नाथ  की   मेरा  भाग्य।।

नाथ तुम्हारा कर मेरे सिर पर ,

मेरा सिर हो तुम्हारे  चरणों में।

प्रिये  शैलजा  प्राणों से प्यारी ,

तुम साथ रहो वामांगी हमारी।। 


©कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर । 

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

नीति के दोहे मुक्तक

                               ॐ 

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 






काला धन 

काला  होय धंधा धन, दोनों रहते गोय। 

जीवन सदा सुखी रहे, सत्ता कंधा होय।।


©कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। 


शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

समाज सेवी सागर

                           ॐ 

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र






करना चाहूँ समाज सेवा, जैसे करता सागर। 

बदले में बिन कुछ चाहे ,जैसे तत्पर सागर।।

सागर रत्नों की  खान, नहीं कोई अभिमान।

धरती  झुलस रही हो  ,तरनि  उगले  आग।। 

तब पवन संदेशा  देय, समाज सेवी सागर।

सागर वेश  बदलकर , साथ पवन जाकर।।

श्याम    रूप      धर , घनघोर वारिश  कर। 

तपन    धरती     की,  शांत  करता  सागर।। 

पुलकित धरिणी कहती, धन्य  धन्य   सागर।

तुझ सा नहिं समाजसेवी,धन्य धन्य सागर।।


©कवि : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। 

 

 

  

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...