बुधवार, 27 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 35

 -- अशर्फी लाल मिश्र (1943----), अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







सुदामा मन ही मन करें विलाप,

प्रिय  बच्चे  हमारे  दिखते नहीं।

तुम  कहती अपने  को सुशीला,

पर  साथ  दिखते मेरे बच्चे नहीं।।


यदि मान भी लूँ तुम्हें सुशीला,

पर दिखती नहीं सु शीला  सी।

कैसे  बदली  छानी  महल   में?

कैसे  तू  दिख रही पटरानी सी?


नाथ  आप जब  गये  द्वारिका,

मिलने कान्हा बचपन  मीत से।

इधर बच्चे भी हो रहे प्रफुल्लित,

लायेंगे उपहार नाथ द्वारिका से।।


विप्र का गमन  जब पुरी द्वारिका,

 ज्यों ही कदम पड़े  होंगे नगर में।

नाथ  बायाँ  नेत्र   फड़कने  लगा,

 रात सपने में सोई निज महल में।।


नाथ सपने में देखा मुरलीधर को,

एक पैर से खड़े अरु कटि तिरछी।

अधर  पर  जिनके   मुरली   सोहै,

नासा  पुट  फड़कें  भृकुटी तिरछी।।

-- रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 34

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







सुशीला अब हो गई बेचैन,

बच्चे सरोवर में जल केलि।

कैसे  मनाऊँ   प्रियतम को,

खड़े  बीच  गली  हठ पेलि।।


अब सुशीला दौड़ी उस ओर,

जँह  विप्र खड़े थे बीच गली।

सखियाँ पूँछ रही सुशीला से,

क्यों बच्चे नाहीं  साथ  सखी।।


गर्मी ऋतु के कारण सखी,

जल केलि सरोवर हैं बच्चे।

कुछ काल बाद आ जायेंगे,

सखी विप्र  के  सारे  बच्चे।।


सुदामा  ने देखा सुशीला को,

वापस आ गई बिन बच्चों के।

सुदामा के तेवर अब तीखे थे,

सुशीला नहीं  बिन बच्चों  के।।


विप्र के दोनों पैर पकड़ कर, 

सुशीला  सिर था  चरणों में।

नाथ बच्चे स्नान कर आ रहे,

अब  तो पधारो  निज घर में।।

-- रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 33

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







सुशीला  ने  मन  में सोचा,

बच्चे  संभव  हों सरोवर में।

दौड़ पड़ी थी अब सुशीला,

जँह बच्चे  केलि सरोवर में।।


बच्चो जल्दी बाहर आओ,

पिता  तुम्हारे  द्वार   खड़े।

गये थे  मित्र  कान्हा पास,

वापस  आकर  द्वार  खड़े।।


बच्चो  तुम्हारे  पिताश्री ने,

हमें तो  पहचाना  ही नहीं।

विप्र कह रहे  एक ही बात,

प्रिया मेरी बिन बच्चों नहीं।।


आ जाओ सरोवर बाहर,

पिता तुम्हारे  द्वार  खड़े।

माते घर ले जाओ सादर,

थक जायेंगे वे खड़े खड़े।।


अब कुछ काल ठहरो माते!

हम  अभी  अभी  आये  हैं।

गर्मी से था तन  झुलस रहा,

अब कुछ कुछ राहत पाये हैं।।

-- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


रविवार, 3 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 32

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)






बहु विधि समझाया सुशीला ने,

पर विप्र को हुआ विश्वास नहीं।

सब सखियाँ  भी समझाय रहीं,

पर विप्र को होता विश्वास नहीं।।


एक   सखी  तब   बोल  पड़ी,

सखि! टेरि बुलाओ बच्चों को।

ठीक कहा अब हम  जाय रहीं,

शीघ्र  बुलाने  सब  बच्चों   को।।


सुशीला  अब  दौड़ी  तेजी  से,

शीघ्र  पहुँच  गई अब महल में।

सुशीला बच्चों  के नाम पुकारे,

ढूंढ रही दौड़ दौड़ कर महल में।।


पर घर में  बच्चा था कोई नहीं,

अब सुशीला हो  गई थी बेचैन।

दौड़ दौड़ कर अब थक गई थी,

अश्रु पूरित हो गये थे दोनों नैन।।


इस बीच सखियाँ  टेरि रहीं,

जल्दी  आओ   मेरी   सखी!

साथ में  बच्चे  लेकर आओ,

विप्र पहचान सकें मेरी सखी!

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


शनिवार, 2 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 31

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)







सुशीला  दोनों  कर जोरे,

विनती  करें   सुदामा  से।

हम  हैं  आप की सुशीला,

पूँछो इन  मेरी सखियों से।।


मेरी  सुशीला  भोली  भाली,

कभी न देखीं सखियाँ साथ।

मानू  कैसे तुम  मेरी सुशीला,

कहाँ से आयीं सखियाँ साथ।।


मेरी सुशीला  सीधी सादी,

सदा सिर पर पल्लू  रहता।

तुम कैसे बिन पल्लू वाली,

तेरा  मन भी  चंचल रहता।।


नाथ  गरीबी  में  नहि मीत,

नहि  होतीं  कोई  सखियाँ।

भीख मांग कर रहा गुजारा,

कैसे मीत कहाँ से सखियाँ।।


नाथ गरीबी  में सिर  ढकना,

अरु तन ढकना था मजबूरी।

अब नाथ  द्वारिका  दया  से,

सिर पर पल्लू है नहीं जरूरी।।

-- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...