--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
लगा जेठ अब चले लुआरा,
दिनपति बरसाये अंगारा।
रथ दिनपति जब निकला,
मारूत भी भयभीत छिपा।।
मानो अनुशासित सैनिक ,
हिलना डुलना बन्द हुआ ।
मारूत मीत पीपल पात,
दिनपति देते सलामी हैं।
श्वान बेचारे जीभ निकाले,
पशु पक्षी भी बेहाल दिखें।
मयूर नर्तन अब नाहि दिखे,
वे भी अब बेहाल दिखें।।
- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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