रविवार, 29 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






पाप

हिय में जिसके पाप हो, तीरथ गये न शुद्ध।

मदिरा घट तपाये से, फिर भी रहे अशुद्ध।। 

मान

वृक्ष  एक  के  पुष्पों से , विपिन सुवासित जान।

वैसे  हि  सु   संतान  से, कुल का जग में  मान।।

सफलता का मंत्र

चुप से मिटे कलह सदा,  दरिद्रता       उद्योग।

जाग्रत का ही भय मिटे, यह जानत सब लोग।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


5 टिप्‍पणियां:

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...