मंगलवार, 29 सितंबर 2020

प्रताप का भाला

 © कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र 

राणा ने खाई घास की रोटियाँ,
शैया   जिनकी    कंकड़   पर। 
अरावली   की   पहाड़ियाँ   भी ,
राणा   संग   हो  गई  अमर।।

अकबर  सेना  बहुतै  विशाल ,
प्रताप   सेना  पहुँची   समर। 
देखि    चेतक     चाल   जबै,
भगदड़  मचगई  बीच  समर।।

चेतक  ने  अब  पैर   रखे ,
मान  सिंह  के  हाथी  पर। 
भय  से  हौदा  हिल  गया ,
गिरते   गिरते  भूमि  पर।।

भाला   देखा   राणा   का ,
काँपा मान सिंह थर थर। 
अब राणा के एक इशारे से,
चेतक पहुँचा बीच समर।।

प्रताप का भाला ऐसा चला ,
चिघ्घाड़े हाथी बीच समर। 
शोणित   धारा  ऐसी  बही ,
सैनिक बह रहे बीच समर।।

-- लेखक एवं रचनाकार अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर।©

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गुरुवार, 24 सितंबर 2020

बाल सखा बहुतै मिलिहैं

 © कवि: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर  

अशर्फी लाल मिश्र 
बाल     सखा    बहुतै    मिलिहैं,
पर चन्द  की  समता कोई नहीं।
चन्द    पृथ्वीराज का बाल सखा,
जीवन पर्यन्त  छोड़ा  साथ   नहीं।।

पृथ्वीराज  बंदी था गजनी में ,
साथ    में   चंदबरदाई   भी। 
गजनी में चंद  की एक पहल ,
महाराज  हमारे  तीर कुशल। 

शब्द   पर   उनका  तीर   चले ,
चाहें  सुल्तान  परीक्षा  कर लें। 
पृथ्वीराज ने साधा तीर कमान ,
ऊपर से देख रहा गोरी सुल्तान।। 

तभी चंद ने छंद सुनाया ,
पृथ्वीराज ने तीर चलाया। 
अब  भूमि   पड़ा था गोरी,
धन्य  राज   चंद  की  जोरी।।
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शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुर्दे भी सुनकर फड़क उठें

 © कवि ; अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र 

कवि चंद की कविता ऐसी थी। 
मुर्दे  भी  सुनकर  फड़क उठें।।

चंद  पृथ्वीराज   का  सेनापति,
दरबार  में  था   दरबारी  कवि। 
कविता  पढ़े  जब  युद्ध भूमि में ,
सैनिकों की भुजायें  फड़क उठें।।

पृथ्वीराज    गोरी   का   बंदी ,
पट्टी    बंधी    थी  आँखों  पर। 
कवि  चंद  का  दोहा  सुनकर ,
तीर  चलाया  था  गोरी  पर।।

कवि चंद की कविता ऐसी थी। 
मुर्दे   भी  सुनकर  फड़क  उठें।।
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गुरुवार, 17 सितंबर 2020

पहले ठुमुक करौ नर्तन ( भजन )

 © Poet : Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur Dehat.

Asharfi Lal Mishra

 जब  तक  अधरन  पर  वंशी,
कान्हा  करहि न कोई  बात। 
कैसे  होय विलग अधरन से,
कैसे     हो  कान्हा  से  बात।।

व्याकुल   हो  गई  गोपी जब,
अवसर   पाइ   छिपाई  वंशी। 
कान्हा      दौड़े     दौड़े    ढूँढ़ै,
कहाँ     गई    है   मेरी  वंशी।।


हर   गोपी   से   पूँछ   रहे   हैं ,
कहुँ      देखी     है  मेरी  वंशी।
हंस    बोली   वृषभानु  कुमारी,
' लाल ' तुम्हारी क्या यह वंशी।।

मचल   गये   हैं   कान्हा  तब,
 दे    दे    मेरी    प्यारी   वंशी। 
पहले    ठुमुक    करौ    नर्तन ,
तब        दैहौं     तेरी     वंशी।।
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रविवार, 13 सितंबर 2020

नीति के दोहे (मुक्तक)

© कवि : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र 
जनतंत्री   नौकरशाह , दलगत  देखा जाय। 
 सत्ता हो प्रतिकूल यदि , काम टालता जाय।।

हर नौकरशाह  पकड़े ,एक    खम्भा     मजबूत।              
कौन  विधी  शासन चले, कौन  कील   ताबूत।।              






शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

पीछे पीछे वृषभानु लली (भजन )

© कवि ; अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र 

खेलत खेलत  एक   दिवस ,
कान्हा पहुँचे वृषभानु गली। 
देख   दुवारे  वृषभानु    खड़े ,
कान्हा  पूँछै वृषभानु  लली।। 

कान्हा   द्वार  पुकार  रहे ,
बहार  आओ    मेरी  लली। 
बाहर आई वृषभानु दुलारी  ,
खेलन चलिहौ  मेरी गली।। 

ताहि समय अधराधर धरि वंशी ,
गूँज     गई     वृषभानु    गली। 
आगे   आगे   कान्हा   चलि  रहे ,
पीछे    पीछे   वृषभानु     लली।। 




विप्र सुदामा - 39

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943---) प्रिये तुझे  मुबारक तेरा महल, मुझको प्रिय  लागै मेरी छानी। ...