शुक्रवार, 29 मार्च 2024

विप्र सुदामा - 39

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943---)








प्रिये तुझे  मुबारक तेरा महल,

मुझको प्रिय  लागै मेरी छानी।

तुम  सोइयो  आपन  महल में,

हम गुजारब दिन छप्पर छानी।।


नाथ हमने  नाहीं माँगा महल,

आप के प्रताप  से बना महल।

नाथ आप के बिना व्यर्थ महल,

हम भी नाहीं जाऊँ  इस महल।।


नाथ पावस  ऋतु आयेगी,

घन  घोर  घटाएँ   छायेंगी।

अविरल  मेघ  बरसते होंगे,

बच्चे  कैसे  रहेंगे  छानी  में।।


जब पवन झकोरा आयेगा,

नाथ  हाड़  काँपती सर्दी में।

नाथ  घर में छोटे बच्चे चार,

कैसे  रहेंगे  छप्पर  छानी में।।


नाथ हम  रह  लेंगी  छानी में,

पर बच्चे  कैसे रहेंगे छानी में।

आज बच्चों  के ही  भाग्य से,

नाथ छानी बदल गई महल में।।

रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

 

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

विप्र सुदामा - 38

 कवि एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)






इसी  बीच आ गई  सुशीला,

देखा बच्चे थे पितु चरणों में

कर जोड़े अब खड़ी सुशीला,

नाथ चलिये अब निज घर में।।


विप्र अभी थे अपनी हठ में,

मन लगा था निज छानी में

दूजे का  यह  दिखता महल,

मेरा मन लगा निज छानी में।।


नाथ  सोई थी  निज छानी में,

आँखे खुली थी इसी महल में।

स्वप्न में दिखे थे द्वारिका नाथ,

अरु बच्चे भी सोये थे साथ में।।


अब मैं  सब  कुछ समझ गया,

तू ने ही  माँगा  कान्हा  से घर।

हम सदा  तत्व  ज्ञानी  ब्राह्मण,

कभी न मन में सोचा ऐसा घर।।


हठ  पेलि  द्वारिका  भेजा तूने,

पर कोई  लालच नाहीं  मन में।

निष्काम भाव से गया द्वारिका,

उसी भाव  लौटा  निज भूमि में।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

विप्र सुदामा - 37

 रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







हठी   सुदामा   खड़े    गली,

सुशीला की सुनते एक नहीं।

बिन बच्चों की कैसे सुशीला?

प्रिया  मेरी  बिन  बच्चों  नहीं।।


सुशीला  दौड़ी  उस  ओर,

जँह बच्चे केलि सरोवर में।

अब सुशीला हो गई उदास,

थे बच्चे अब नहीं सरोवर में।।


इधर बच्चों ने जब जाना

पिता आ गये द्वारिका से।

झट पट दौड़े निज घर को,

अन्दर पहुँचे गुप्त द्वार से।।


नवल वस्त्र थे अब तन में,

केश भी थे अब सुसज्जित।

सभी बच्चे निकले महल से,

देखकर विप्र अब अचंभित।।


बच्चे सभी नत मस्तक थे

सिर था विप्र के चरणों में

सुदामा मन अब गद गद 

मन पहुँचा प्रभु चरणों में।।

रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर, उत्तरप्रदेश, भारत।©


शनिवार, 27 जनवरी 2024

विप्र सुदामा - 36

 कवि एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर.

अशर्फी लाल मिश्र (1943---=-)







सपने में देखा मुरलीधर को, 

क्या कुछ  माँगा उनसे प्रिये

हम सदा तत्व ज्ञानी ब्राह्मण,

कभी लालच  नाहीं मेरे हिये।।


नाथ  मुरली  ध्वनि अति मधुर,

हम तनमय  होकर सुनती रही।

अचानक मुरली ध्वनि बन्द हुई,

अरु आँखे खुली, खुली ही रही।।


नाथ जब देखा आँखे मलकर,

झोपड़ी जगह  बना था  महल

नाथ तभी  आ गई  एक दासी,

उसने  कहा  क्या  करूँ टहल।। 


हर  कोई  अचम्भा  कर रहा,

अति भीड़ जुटी बाहर महल

विप्र  छानी  जगह रातों रात,

कैसे  बना  यह  भव्य  महल।।


नाथ मुरलीधर  की रही कृपा,

जो रातों रात  बन गया महल।

नाथ हमने कुछ भी माँगा नहीं,

अब  तो  पधारो  अपने महल।।

कवि एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


सोमवार, 1 जनवरी 2024

बाइस जनवरी सन चौबीस

 -- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







बाइस जनवरी सन चौबीस, 

मन रही दीवाली घर घर में।

सदियों से है रिक्त सिंहासन,

चर्चा हो  रही है  जन जन में।।


सिंहासन रिक्त साकेतपुरी,

मनु  राम अभी  थे  बन में।

राम होंगे आरूड़ सिंहासन,

चर्चा  हो रही  जन  जन में।


चारों ओर  ख़ुशी  है  फैली,

बज रही बधाई  घर  घर में।

राम  होंगे आरूड़ सिंहासन,

चर्चा  हो  रही जन  जन में।।


भक्त विश्व के कोने कोने से,  

पहुँच रहे  हैं साकेत धाम में

राम  होंगे आरूड़ सिंहासन,

चर्चा  हो  रही  जन  जन  में।।


जन जन की  एक  ही इच्छा,

उत्सव देखूंँ साकेत  धाम  में।

राम  होंगे  आरूड़  सिंहासन,

चर्चा  हो   रही   जन  जन  में।।

कवि एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 27 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 35

 -- अशर्फी लाल मिश्र (1943----), अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







सुदामा मन ही मन करें विलाप,

प्रिय  बच्चे  हमारे  दिखते नहीं।

तुम  कहती अपने  को सुशीला,

पर  साथ  दिखते मेरे बच्चे नहीं।।


यदि मान भी लूँ तुम्हें सुशीला,

पर दिखती नहीं सु शीला  सी।

कैसे  बदली  छानी  महल   में?

कैसे  तू  दिख रही पटरानी सी?


नाथ  आप जब  गये  द्वारिका,

मिलने कान्हा बचपन  मीत से।

इधर बच्चे भी हो रहे प्रफुल्लित,

लायेंगे उपहार नाथ द्वारिका से।।


विप्र का गमन  जब पुरी द्वारिका,

 ज्यों ही कदम पड़े  होंगे नगर में।

नाथ  बायाँ  नेत्र   फड़कने  लगा,

 रात सपने में सोई निज महल में।।


नाथ सपने में देखा मुरलीधर को,

एक पैर से खड़े अरु कटि तिरछी।

अधर  पर  जिनके   मुरली   सोहै,

नासा  पुट  फड़कें  भृकुटी तिरछी।।

-- रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

विप्र सुदामा - 34

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







सुशीला अब हो गई बेचैन,

बच्चे सरोवर में जल केलि।

कैसे  मनाऊँ   प्रियतम को,

खड़े  बीच  गली  हठ पेलि।।


अब सुशीला दौड़ी उस ओर,

जँह  विप्र खड़े थे बीच गली।

सखियाँ पूँछ रही सुशीला से,

क्यों बच्चे नाहीं  साथ  सखी।।


गर्मी ऋतु के कारण सखी,

जल केलि सरोवर हैं बच्चे।

कुछ काल बाद आ जायेंगे,

सखी विप्र  के  सारे  बच्चे।।


सुदामा  ने देखा सुशीला को,

वापस आ गई बिन बच्चों के।

सुदामा के तेवर अब तीखे थे,

सुशीला नहीं  बिन बच्चों  के।।


विप्र के दोनों पैर पकड़ कर, 

सुशीला  सिर था  चरणों में।

नाथ बच्चे स्नान कर आ रहे,

अब  तो पधारो  निज घर में।।

-- रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

विप्र सुदामा - 39

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943---) प्रिये तुझे  मुबारक तेरा महल, मुझको प्रिय  लागै मेरी छानी। ...