शनिवार, 18 नवंबर 2023

अब पड़ा है पाला जरा समर

 -- कवि : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







अब  पड़ा  है  पाला  जरा समर,

सब कर रहे किनारा बीच समर।

इष्ट  मित्र जो  कहलाते थे अपने,

अब  सब  दूर  हो  रहे धीरे  धीरे।।


भाई  बंधु   जो   समर  भुजायें,

सब  साथ  छोड़  रहे धीरे  धीरे।

जिनको पाला सीने से लगाकर,

अब सब  दूर  हो रहे  धीरे  धीरे।।


कहने  को अपनी जीवन  संगिनी,

पर हथियार छोड़  रही  धीरे  धीरे।

जिन  कदमों  में  थी  धमक  कभी ,

वे भी  साथ   छोड़  रहे   धीरे  धीरे।।


जिन भुजाओं पर था बहुत घमंड,

वे  बलहीन दिख  रहीं  धीरे  धीरे।

नयनों में जो  तेज  भरा था कभी,

वे अब  तेजहीन हो  रहे धीरे धीरे ।।


अब सभी  इन्द्रियाँ  हैं कर जोरे,

बिदाई ले  रही  अब  धीरे  धीरे।

प्रत्युत्तर  में  मैंने   भी  कर  जोरे,

मत  छोड़ो  साथ मेरा धीरे  धीरे ।।

-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







मित्रता होय सज्जन की, मनु  गन्ना  मुँह  आन।

तोड़     चबाओ   चूसिये, हर विधि मीठा जान।।


हो वैभव धन ओहदा, अपने बनें अनेक।

पतन होय धन ओहदा, दूर होय हर एक।।


माता पिता अरु न गुरू, सबहि से बड़ा अर्थ।

जग  में  नाटक  हो  रहे, ढोंगी   करें   अनर्थ।।


-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

शनिवार, 11 नवंबर 2023

विप्र सुदामा - 30

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (१९४३----)









सुशीला थी रत्नो से  जड़ित,

जूड़े में  था  गजरा  शोभित।

थी  विप्र  पैरों  में  अब  नत,

मन सुदामा  बहुत सशंकित।।


विप्र मन में  कर  रहे विचार,

सज्जा इसकी अप्सरा जैसी। 

वेश भूषा अरु  हाव भाव से,

मनो दिखती  गणिका  जैसी।।


विप्र  हटे   दो  कदम  तभी,

मत  दिखलाओ रूप जाल।

हम  हैं  तत्व  ज्ञानी  ब्राह्मण,

मायावी दिखता  रूप जाल।।


तू कहती अपने को सुशीला,

पर तू दिखती गणिका जैसी।

हिरण्याक्षी अरु कालिख रेख,

हाव भाव से तू गणिका जैसी।।


मेरी सुशीला सीधी सात्विक,

उसमे दिखता था  भोलापन।

गंभीर भाव की मेरी सुशीला,

तुझ में  दिख  रहा  चंचलपन।।

-- लेखक एवं रचनाकार:अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©









सोमवार, 6 नवंबर 2023

विप्र सुदामा - 29

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)






देखा   विप्र   बीच  गली,

सुशीला  दौड़ी  महल  से।

चरणों  में  सिर  रख  कर,

गले  लिपट  गई  विप्र  से।।


सुदामा  ने  कहा  दूर   हटो,

हम  विप्र  एक  पत्नी  व्रती।

नाथ हम  है तुम्हारी तिरिया,

बच्चों की माँ सुशीला प्रिया।।


मेरी कामिनी  सीधी  साधी,

सादे कपड़ों में सदा ही रही।

तू दिख रही है स्वर्ग अप्सरा,

जूड़े में तेरे  फूलों का गजरा।।


सुशीला  मेरी  सीधी  सादी,

तू  दिख रही  है  रत्नों जड़ी।

सुशीला पास न  मुदरी  एक,

तेरी हर अंगुली है  हीरे जड़ी।।


मेरी सुशीला थी बिन बेसरि,

तू दिख  रही है बेसरि  साथ।

तेरे साथ  न  दिख  रहे  बच्चे,

सुशीला  रहती  बच्चों  साथ।। 

-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







समाज सेवा बंद है, राजनीति के संग।

वादे मुफ्त रिवड़ी के, यही चुनावी ढंग।।

-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...