शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

माँ की अमूल्य निधि

Asharfi Lal Mishra











देखने     में      थी      सरल ,
लगती   थी   भोली    भाली।  

कमर   उसकी    झुकी    हुई,
उम्र    उसकी     ढली     हुई। 

गाल    थे   उसके      पिचके ,
आँखे    उसकी    धंसी   हुई। 

उसका    भी    था   एक  बेटा,
बहुत दिनों से घर नहीं लौटा। 

अब   घर    में    लगती   जेल ,
समझा उसने नियत का खेल। 

 हाथ    में    एक    लाठी   ली ,
कंधे    पर      झोली     डाली।

निकल पड़ी   अनंत  पथ   पर,
पहुंची  थी  वह  गंगा  तट पर। 

हाँथ जोड़  कर   खड़ी  हुई  थी,
माँ   मुझको  गोद  में  ले  लो। 

पीछे  से   आया  उसका  बेटा,
माँ  के  चरणों  में   था   लेटा।
माँ  उसके   गले   लिपट  गई,
मानो  खोई  निधि  मिल गई।  

© कवि : अशर्फी लाल मिश्र  , अकबरपुर ,कानपुर। 

बुधवार, 27 नवंबर 2019

सत्ता (मुक्तक)

Asharfi Lal Mishra  










© कवि :अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर , कानपुर

कभी सत्ता मिलती आसानी से,
कभी  सत्ता   छीनी   जाती   है।   

राजतन्त्र     में   खून    खराबा ,
जनतंत्र   में  आंकड़े   बाजी  है। 

सत्ता  का  लोभ  सदा  सर्वोपरि ,
धुर विरोधी गले से मिलते दिखे। 

आजादी का ढिंढोरा पीटने वाले ,
सत्ता के लिए बंधक होते दिखे। 

न   कोई       सेक्युलर   न   कोई    वादी ,
सभी सत्ता के लिए गले से मिलते दिखे।

  

शनिवार, 16 नवंबर 2019

विप्र सुदामा -5

Asharfi Lal Mishra








विप्र   सुदामा   का   हाल   देखो।
हठी   सुदामा  का   हाल   देखो।।

माँगे   भिक्षा    मिलती    नाहि।
 ब्राह्मण   धर्म  को  छोड़े  नाहि।।

सुदामा   छोड़ी  आपनि   नगरी।
अब माँगहि भिक्षा दूसरि नगरी।।

चार   थे   बच्चे   साथ में पत्नी।
भूखे     बच्चे       भूखी   पत्नी।।

सुदामा  के कंधे पर झोली एक ।
हाथ    में    टेढ़ी   लाठी    एक ।।

दर -दर   मांगे  सुदामा   भिक्षा।
मांगे   नाही   मिलती    भिक्षा।।

लोग    कहते    देख     सुदामा।
यह    है    कोई    बच्चा   चोर।।

साथ     चार     कैसे       बच्चे ?
भूख   से   व्याकुल  मेरे  बच्चे।।

छोटे   भाइयों   को   भूखा देख।
बड़े  भाई  ने  रोटी  एक  चुराई।।

आगे      आगे       दौड़े     बेटा।
पीछे    पीछे    सेठ  का    बेटा।।

बड़े  बेटे  के  हाथ  में रोटी  देख।
सुशीला  ने  उसकी  पिटाई  की।।

छोटे   भाइयों  को   भूखा  देख।
माई  रोटी   की  चोरी  मैंने  की।।

बेटे को सुशीला ने कंठ लगाया।
बड़े भाई का तूने धर्म निभाया।।

देख  सुदामा  की  ओर  सुशीला।
अविरल   अश्रु    बहाने    लगी।।

© कवि : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर , कानपुर।


रविवार, 10 नवंबर 2019

आज अयोध्या हो गई निर्विवाद ( मुक्तक )

  © कवि : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर                             

Asharfi Lal Mishra










9 नवम्बर 2019

सदियों  से  चला  आ  रहा   था  विवाद।
आज   अयोध्या   हो   गई    निर्विवाद।।

रामनगरी में था मंदिर -मस्जिद विवाद।
 आज    रामनगरी   हो   गई    निर्विवाद।।

रंजन   गोगोई    का    अथक    प्रयास।
सीमित    समय    में   बना   इतिहास।।

जनता  देती   न्यायालय  को साधुवाद।
आज   अयोध्या   हो   गई    निर्विवाद।।
                         =*=

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...