Asharfi Lal Mishra |
विप्र सुदामा का हाल देखो।
हठी सुदामा का हाल देखो।।
माँगे भिक्षा मिलती नाहि।
हठी सुदामा का हाल देखो।।
माँगे भिक्षा मिलती नाहि।
ब्राह्मण धर्म को छोड़े नाहि।।
सुदामा छोड़ी आपनि नगरी।
अब माँगहि भिक्षा दूसरि नगरी।।
चार थे बच्चे साथ में पत्नी।
भूखे बच्चे भूखी पत्नी।।
सुदामा के कंधे पर झोली एक ।
हाथ में टेढ़ी लाठी एक ।।
दर -दर मांगे सुदामा भिक्षा।
मांगे नाही मिलती भिक्षा।।
लोग कहते देख सुदामा।
यह है कोई बच्चा चोर।।
साथ चार कैसे बच्चे ?
भूख से व्याकुल मेरे बच्चे।।
छोटे भाइयों को भूखा देख।
बड़े भाई ने रोटी एक चुराई।।
आगे आगे दौड़े बेटा।
पीछे पीछे सेठ का बेटा।।
बड़े बेटे के हाथ में रोटी देख।
सुशीला ने उसकी पिटाई की।।
छोटे भाइयों को भूखा देख।
माई रोटी की चोरी मैंने की।।
बेटे को सुशीला ने कंठ लगाया।
बड़े भाई का तूने धर्म निभाया।।
देख सुदामा की ओर सुशीला।
अविरल अश्रु बहाने लगी।।
© कवि : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर , कानपुर।
सुदामा छोड़ी आपनि नगरी।
अब माँगहि भिक्षा दूसरि नगरी।।
चार थे बच्चे साथ में पत्नी।
भूखे बच्चे भूखी पत्नी।।
सुदामा के कंधे पर झोली एक ।
हाथ में टेढ़ी लाठी एक ।।
दर -दर मांगे सुदामा भिक्षा।
मांगे नाही मिलती भिक्षा।।
लोग कहते देख सुदामा।
यह है कोई बच्चा चोर।।
साथ चार कैसे बच्चे ?
भूख से व्याकुल मेरे बच्चे।।
छोटे भाइयों को भूखा देख।
बड़े भाई ने रोटी एक चुराई।।
आगे आगे दौड़े बेटा।
पीछे पीछे सेठ का बेटा।।
बड़े बेटे के हाथ में रोटी देख।
सुशीला ने उसकी पिटाई की।।
छोटे भाइयों को भूखा देख।
माई रोटी की चोरी मैंने की।।
बेटे को सुशीला ने कंठ लगाया।
बड़े भाई का तूने धर्म निभाया।।
देख सुदामा की ओर सुशीला।
अविरल अश्रु बहाने लगी।।
© कवि : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर , कानपुर।
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