शनिवार, 30 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 24

 -- लेखक - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----) 







रात   बिताई   पुरी   द्वारिका,

ब्रह्म   मुहूर्त  में  जगे  सुदामा।

शौंच आदि  से  निवृत्त होकर,

निज घर को चल पड़े सुदामा।।


ड्योढ़ी  आये  कृष्ण  भेजने,

साथ  रुक्मिणी   सत्यभामा। 

रानियाँ  दोनों  थीं  कर  जोड़े,

गले  मिल  रहे  कृष्ण  सुदामा।।


नगरी  फैली  एक  ही खबर,

आये  हैं  राजन  मीत  प्रवर।

मीत  वापसी  निज  घर  को,

भीड़  उमड़  रही   दर्शन  को।।


बच्चे  बूढ़े  अरु   महिलायें, 

भीड़ दौड़  रही  दर्शन  को। 

दोनों   ओर  पथ  के   भीड़,

सभी   उतावले   दर्शन  को।।


देख   भाव   भीनी  विदाई, 

गद गद मन  आज  सुदामा। 

बायें  कर   थे  लाठी   साधे,

दायें  से  प्रतिउत्तर   सुदामा।। 

- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©















सोमवार, 25 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 23

-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर

अशर्फी लाल मिश्र 







श्याम  चबाई   एक   मुट्ठी,

दूसरी  मुट्ठी  भरी  थी ज्यों। 

पकड़ा   हाथ  रुक्मिणी  ने,  

सारी सम्पदा  लुटा दोगे यों।। 


इसी बीच भेजा  सन्देश, 

देवलोक  विश्वकर्मा  को। 

जाओ  पुरी  सुदामा  घर, 

महल  बना  दो  कुटी  को।। 


विश्वकर्मा  पहुँचे  थे   पुरी,

जहाँ कुटी सुदामा थी बनी। 

बैकुंठ   लोक   सदृश  अब,

महल  खड़ा  जँह कुटी बनी।। 


महल पास था एक सरोवर,

खिल रहे  कमल  थे  उसमे।

रत्नों  से जटित सुशीला थी,

सखियों संग  केलि  जल में।।


हर काम के सेवक थे लगे,

ड्योढ़ी खड़ा  था द्वारपाल। 

सारे सुख  साधन  महल में,

कोई  था भौतिक कष्ट नहीं।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 20 सितंबर 2023

पुरानी संसद

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर

अशर्फी लाल मिश्र 







एक सौ चवालीस खम्भों पर,

टिकी  हुई   थी  संसद  गोल।

अठारह  सितम्बर  तेइस  को,

इतिहास बन गई  संसद गोल।।


इसी भवन में आज भी गूँजे,

संविधान की एक एक धारा।

लम्बी   बहस   के  बाद    ही,

स्वीकृत  हुई  थी   हर   धारा।।


इसी  भवन  में  गूँज  रहा   है,

भगतसिंह  का  बम  धमाका।

इसी  भवन   में  गूँज  रहा  है, 

बम  बिस्फोट  पोखरण   का।।


इसी भवन  में  गूँज  रही  है,

मुक्त  वाहिनी  की  आवाज।

इसी  भवन  में  गूँज  रही  है,

कश्मीर  विलय  की आवाज।।


इसी भवन  में  गूँज  रही  है,

नेहरू  शास्त्री  की  आवाज।

इसी  भवन  में  गूँज  रहा  है,

अटल का  शायराना अंदाज।।


संसद  को   मोदी   ने   माना,

जनतंत्र  का  है   वह  मन्दिर।

सीढ़ी  को   पहले   चूमा   था,

तभी    प्रवेश   किया   अन्दर।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर देहात।©


शनिवार, 16 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 22

 -- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






कनकी का कण कण ऐसा था,

मनो सुशीला  प्रेम रस डूबा था। 

श्याम मन  भाई सुदामा कनकी, 

रुचि रुचि चबायें श्याम कनकी।। 


प्रेम  रस  लिपटी सुदामा कनकी,

श्याम  मन भाई सुदामा  कनकी।

अब छप्पन भोग  भी   सीठे लगें,

जब फंकी लगाई सुदामा कनकी।।


प्रेम रस  लिपटी अरु थी अटपटी,

ऐसे मन भाई कान्हा को कनकी। 

श्याम  रस  पायें  कनकी का ऐसे,

जिमि गूंगा गुड़ खाकर पाये जैसे।। 


सुशीला  द्वारा   भेजी   कनकी,

प्रेम  रस  में  सिक्त पाई कनकी।

पोटली  में  कण  जब  बंधे होंगे,

प्रेमाश्रु  सुशीला  के   बहे   होंगे।।


श्याम  सोच   रहे  आपन  मन,

चबाय रहे  चाव से  हैं  कनकी। 

पति  पत्नी  अरु   बच्चे   चार,

कैसे   होगी    बचाई   कनकी।।

-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 13 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 21

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर, भारत।©


अशर्फी लाल मिश्र 






सुदामा  बैठे  थे  पर्यंक,

विश्राम  करने के लिये।

कान्हा ने  कहा मित्र से,

है कोई सन्देश मेरे लिये।।


मित्र ने था सिर हिलाया,

मुँह से  बोले  शब्द  नहीं।

देख मित्र की  दीन  दशा,

कुछ भी  छिपा शेष नहीँ।।


कपड़े में बंधी थी कनकी,

बगल सुदामा  छिपाये थे।

सुदामा की थी निज पूँजी,

भेंट में  मित्र  को  लाये थे।।


सुदामा मन भारी  संकोच,

कैसे  दूँ   मैं  कनकी  भेंट।

अचानक  गिर  गई पोटली,

कान्हा जानहि मित्रहि भेंट।।


मुरलीधर  ने  हाथ  उठाई,

खोलकर उसको देखा था।

बड़े  चाव   कनकी  फांकी, 

कान्हा का मन  गद गद था।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर, भारत।©







रविवार, 10 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 20

 -- लेखक एवं रचनाकार - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 


अंसुवन धारा श्याम से,

धुल  गये  पैर  विप्र  के। 

परात अभी  थी खाली, 

अंसुवन  से  अब  पूरी।। 


पावन  जल  परात  का, 

छिड़का  गया  महल में।

पीताम्बर  से   पोंछे  पैर, 

श्याम  गद गद थे मन में।। 


मिष्ठान्न  लाई  रुक्मिणी, 

सत्यभामा  पावन  जल।

 श्याम  दोनों  कर   जोड़े,

जलपान करिये  विप्र  वर।।


श्याम  ने पहनाई  माला,

पुष्प     पारिजात    की।

यात्रा मैं आई  थी थकान, 

मिट गई  अब  विप्र   की।।


सुदामा  आये  थे  मिलने,

साथ  लाये  कनकी  भेंट।

सुदामा मन भारी  संकोच,

कैसे  दूँ   मैं   कनकी  भेंट।।

-लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 6 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 19

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 







निर्विकार थे विप्र सुदामा,

बैठे  थे  राजन  सिंहासन।

रुक्मिणी हाथ  हेम परात,

भामा  कलश जल पावन।।


सुदामा  के  दोनों  पैरों  में,

अगणित  कांटे   थे   चुभे। 

श्याम  निकालें  कांटे जैसे,

निज  हिय  चुभते  हैँ  वैसे।।


कुछ  कांटे  गहरे  थे   चुभे,

दाँत  गड़ाये  निकालन  को। 

अब  दोनों   पैर  परात  रखे,

पावन  चरण  पखारन   को।।


नैनों  से  बही अविरल धार,

मनो गंगा यमुना पावन धार।

सुदामा  मित्र  अरु  विप्र भी,

कान्हा  राजा  अरु  मित्र भी।।


श्याम   की   अश्रुधारा    से 

धुल   गये   दोनों   पैर  तभी

पानी  परात   रखा  हि   रहा

श्याम  का  उधर   ध्यान नहीँ 

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

रविवार, 3 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 18

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर

अशर्फी लाल मिश्र 






अँसुवन  धार   बहती  रही,

बहु काल  मित्र  गले  मिले।

बहुत  किन्ही कान्हा विनती, 

विप्र   सुदामा   अंदर   चले।।


सरल भाव थे  विप्र  सुदामा,

महल   ले  गये   थे   कान्हा।

राजन  का जो था  सिंहासन,

बना  विप्र   सुदामा   आसन।।


कान्हा पुकारें रानी रुक्मिणी,

अरु  पुकार  रहे  सत्यभामा।

दौड़ो   रानी   जल्दी   आओ,

पाहुने   आये   विप्र   सुदामा।।


रुक्मिणी आओ साथ परात, 

हो जल  पूरित  कलश साथ।

कान्हा बैठ गये अब भूमि पर,

टिक  गई दृष्टि  विप्र  पैरों पर।।


देख   सुदामा    पैरों    कांटे,

अंसुवन   धार   बहने   लगीं।

फटी   बिवाईं   थीं   पैरों  में,

विप्र  दशा  को  बताने  लगीं।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...