-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर
अशर्फी लाल मिश्र |
श्याम चबाई एक मुट्ठी,
दूसरी मुट्ठी भरी थी ज्यों।
पकड़ा हाथ रुक्मिणी ने,
सारी सम्पदा लुटा दोगे यों।।
इसी बीच भेजा सन्देश,
देवलोक विश्वकर्मा को।
जाओ पुरी सुदामा घर,
महल बना दो कुटी को।।
विश्वकर्मा पहुँचे थे पुरी,
जहाँ कुटी सुदामा थी बनी।
बैकुंठ लोक सदृश अब,
महल खड़ा जँह कुटी बनी।।
महल पास था एक सरोवर,
खिल रहे कमल थे उसमे।
रत्नों से जटित सुशीला थी,
सखियों संग केलि जल में।।
हर काम के सेवक थे लगे,
ड्योढ़ी खड़ा था द्वारपाल।
सारे सुख साधन महल में,
कोई था भौतिक कष्ट नहीं।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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