लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर
अशर्फी लाल मिश्र |
एक सौ चवालीस खम्भों पर,
टिकी हुई थी संसद गोल।
अठारह सितम्बर तेइस को,
इतिहास बन गई संसद गोल।।
इसी भवन में आज भी गूँजे,
संविधान की एक एक धारा।
लम्बी बहस के बाद ही,
स्वीकृत हुई थी हर धारा।।
इसी भवन में गूँज रहा है,
भगतसिंह का बम धमाका।
इसी भवन में गूँज रहा है,
बम बिस्फोट पोखरण का।।
इसी भवन में गूँज रही है,
मुक्त वाहिनी की आवाज।
इसी भवन में गूँज रही है,
कश्मीर विलय की आवाज।।
इसी भवन में गूँज रही है,
नेहरू शास्त्री की आवाज।
इसी भवन में गूँज रहा है,
अटल का शायराना अंदाज।।
संसद को मोदी ने माना,
जनतंत्र का है वह मन्दिर।
सीढ़ी को पहले चूमा था,
तभी प्रवेश किया अन्दर।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर देहात।©
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