-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
कनकी का कण कण ऐसा था,
मनो सुशीला प्रेम रस डूबा था।
श्याम मन भाई सुदामा कनकी,
रुचि रुचि चबायें श्याम कनकी।।
प्रेम रस लिपटी सुदामा कनकी,
श्याम मन भाई सुदामा कनकी।
अब छप्पन भोग भी सीठे लगें,
जब फंकी लगाई सुदामा कनकी।।
प्रेम रस लिपटी अरु थी अटपटी,
ऐसे मन भाई कान्हा को कनकी।
श्याम रस पायें कनकी का ऐसे,
जिमि गूंगा गुड़ खाकर पाये जैसे।।
सुशीला द्वारा भेजी कनकी,
प्रेम रस में सिक्त पाई कनकी।
पोटली में कण जब बंधे होंगे,
प्रेमाश्रु सुशीला के बहे होंगे।।
श्याम सोच रहे आपन मन,
चबाय रहे चाव से हैं कनकी।
पति पत्नी अरु बच्चे चार,
कैसे होगी बचाई कनकी।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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