बुधवार, 13 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 21

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर, भारत।©


अशर्फी लाल मिश्र 






सुदामा  बैठे  थे  पर्यंक,

विश्राम  करने के लिये।

कान्हा ने  कहा मित्र से,

है कोई सन्देश मेरे लिये।।


मित्र ने था सिर हिलाया,

मुँह से  बोले  शब्द  नहीं।

देख मित्र की  दीन  दशा,

कुछ भी  छिपा शेष नहीँ।।


कपड़े में बंधी थी कनकी,

बगल सुदामा  छिपाये थे।

सुदामा की थी निज पूँजी,

भेंट में  मित्र  को  लाये थे।।


सुदामा मन भारी  संकोच,

कैसे  दूँ   मैं  कनकी  भेंट।

अचानक  गिर  गई पोटली,

कान्हा जानहि मित्रहि भेंट।।


मुरलीधर  ने  हाथ  उठाई,

खोलकर उसको देखा था।

बड़े  चाव   कनकी  फांकी, 

कान्हा का मन  गद गद था।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर, भारत।©







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