-- लेखक एवं रचनाकार - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
अंसुवन धारा श्याम से,
धुल गये पैर विप्र के।
परात अभी थी खाली,
अंसुवन से अब पूरी।।
पावन जल परात का,
छिड़का गया महल में।
पीताम्बर से पोंछे पैर,
श्याम गद गद थे मन में।।
मिष्ठान्न लाई रुक्मिणी,
सत्यभामा पावन जल।
श्याम दोनों कर जोड़े,
जलपान करिये विप्र वर।।
श्याम ने पहनाई माला,
पुष्प पारिजात की।
यात्रा मैं आई थी थकान,
मिट गई अब विप्र की।।
सुदामा आये थे मिलने,
साथ लाये कनकी भेंट।
सुदामा मन भारी संकोच,
कैसे दूँ मैं कनकी भेंट।।
-लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी!
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