लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
निर्विकार थे विप्र सुदामा,
बैठे थे राजन सिंहासन।
रुक्मिणी हाथ हेम परात,
भामा कलश जल पावन।।
सुदामा के दोनों पैरों में,
अगणित कांटे थे चुभे।
श्याम निकालें कांटे जैसे,
निज हिय चुभते हैँ वैसे।।
कुछ कांटे गहरे थे चुभे,
दाँत गड़ाये निकालन को।
अब दोनों पैर परात रखे,
पावन चरण पखारन को।।
नैनों से बही अविरल धार,
मनो गंगा यमुना पावन धार।
सुदामा मित्र अरु विप्र भी,
कान्हा राजा अरु मित्र भी।।
श्याम की अश्रुधारा से
धुल गये दोनों पैर तभी
पानी परात रखा हि रहा
श्याम का उधर ध्यान नहीँ
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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