रविवार, 3 सितंबर 2023

विप्र सुदामा - 18

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर

अशर्फी लाल मिश्र 






अँसुवन  धार   बहती  रही,

बहु काल  मित्र  गले  मिले।

बहुत  किन्ही कान्हा विनती, 

विप्र   सुदामा   अंदर   चले।।


सरल भाव थे  विप्र  सुदामा,

महल   ले  गये   थे   कान्हा।

राजन  का जो था  सिंहासन,

बना  विप्र   सुदामा   आसन।।


कान्हा पुकारें रानी रुक्मिणी,

अरु  पुकार  रहे  सत्यभामा।

दौड़ो   रानी   जल्दी   आओ,

पाहुने   आये   विप्र   सुदामा।।


रुक्मिणी आओ साथ परात, 

हो जल  पूरित  कलश साथ।

कान्हा बैठ गये अब भूमि पर,

टिक  गई दृष्टि  विप्र  पैरों पर।।


देख   सुदामा    पैरों    कांटे,

अंसुवन   धार   बहने   लगीं।

फटी   बिवाईं   थीं   पैरों  में,

विप्र  दशा  को  बताने  लगीं।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


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