शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







मित्रता होय सज्जन की, मनु  गन्ना  मुँह  आन।

तोड़     चबाओ   चूसिये, हर विधि मीठा जान।।


हो वैभव धन ओहदा, अपने बनें अनेक।

पतन होय धन ओहदा, दूर होय हर एक।।


माता पिता अरु न गुरू, सबहि से बड़ा अर्थ।

जग  में  नाटक  हो  रहे, ढोंगी   करें   अनर्थ।।


-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विप्र सुदामा - 56

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) भामा मुख  से जब  सूना, दर्शन  करना हो वीतरागी। या तीर्थयात्रा पर हो ...