शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुर्दे भी सुनकर फड़क उठें

 © कवि ; अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र 

कवि चंद की कविता ऐसी थी। 
मुर्दे  भी  सुनकर  फड़क उठें।।

चंद  पृथ्वीराज   का  सेनापति,
दरबार  में  था   दरबारी  कवि। 
कविता  पढ़े  जब  युद्ध भूमि में ,
सैनिकों की भुजायें  फड़क उठें।।

पृथ्वीराज    गोरी   का   बंदी ,
पट्टी    बंधी    थी  आँखों  पर। 
कवि  चंद  का  दोहा  सुनकर ,
तीर  चलाया  था  गोरी  पर।।

कवि चंद की कविता ऐसी थी। 
मुर्दे   भी  सुनकर  फड़क  उठें।।
=*= 

       

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