रविवार, 15 दिसंबर 2024

विप्र सुदामा - 56

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







भामा मुख  से जब  सूना,

दर्शन  करना हो वीतरागी।

या तीर्थयात्रा पर हो जाना,

अकेले  मिलता पुण्य नहीँ।।


कान्हा  थे  अब  चिंतित ,

कैसे  जाऊँ  पुरी सुदामा।

भामा  कहती   बार  बार,

अकेले मिलता पुण्य नहीं।।


इसी  बीच  रुक्मिणी बोलीं,

भामा कहती नीति की बात।

नाथ अकेले जाना ठीक नहीं,

अकेले  मिलता  पुण्य   नहीं।।


 दो दो रानी एक  ही बात,

अकेले मिलता पुण्य नहीं।

कान्हा मन में रम गई बात,

अकेले  मिलता पुण्य नहीं।।


कैसे  भूलूँ  मीत  सुदामा,

सुदामा  बोलें मीठे  बोल।

प्रिया कहती एक ही बात,

अकेले मिलता पुण्य नहीं।।

- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


सोमवार, 9 दिसंबर 2024

विप्र सुदामा - 55

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)











राजन   मित्र    वीतरागी, 
दिव्य  पुरुष  ब्रह्म  ज्ञानी।
अकेले जाना अरु  दर्शन,
अकेले मिलता पुण्य नहीँ।।

दिव्य पुरुष के हों दर्शन,
या  जाना  हो  तीर्थाटन।
अकेले अकेले ही जाना,
अकेले मिलता पुण्य नहीं।।

राजन धर्म  की रीति यही,
पत्नी संग  हों दिव्य दर्शन।
वामांगी संग हो तीर्थ यात्रा,
अकेले  मिलता पुण्य नहीँ।।

राज काज  है भव जंजाल,
इसमें मेरी कोई रूचि नहीं।
राजन हम भी चलना चाहें,
अकेले  मिलता पुण्य नहीँ।।

नाथ अब  क्या सोच विचार,
हम  भी  हैँ चलने को तैयार।
अब हैँ किस दुविधा में आप,
अकेले  मिलता  पुण्य  नहीं।।
- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

जागरण गीत

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







उठो  लाल  तुम  सुबह  सुबह,

कलियाँ मुस्काती सुबह सुबह।

मोती  बिखरे हैँ  पात पात पर,

उठो  लाल  तुम  सुबह  सुबह।

दिनकर अपने सहस्त्र करों से,

मोती   चुनता   सुबह   सुबह।

नित ऊषा मुस्काये सुबह सुबह,

उठो  लाल  तुम  सुबह  सुबह।

प्रणवायु  का  खुला   खजाना,

भर  लो  झोली  सुबह   सुबह।

चिड़ियाँ चहकें नित मीठे  बोल,

उठो  लाल  तुम  सुबह   सुबह।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

विप्र सुदामा - 54

 रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)







नाथ! हम  मान  रही हैँ,

सारथी कुशल हैँ आप।

निज रक्षा  में भी समर्थ,

वाक कुशल भी हैँ आप।।


नाथ  बिनु  राजा  का  देश,

कभी  शोभित  होता  नहीं।

जिमि भव्य मन्दिर हो बना,

कलश  बिनु  शोभित  नहीं।।


प्रिये  तुम  देखो राज  काज,

हम जाना चाहें पुरी सुदामा।

द्वारिका  होगी  नहीं अनाथ,

 राज काज सब  देखें भामा।।


जब  जब  जाऊँ शैय्या पर,

कानों में ध्वनि गूँजा करती।

कान्हा  कान्हा  मीठी ध्वनि, 

सदा कानों  में  गूँजा करती।।


प्रिये  मीत  हमारे  बीतरागी,

अपने में  रहते  मगन  सदा।

मन में हो  रही  प्रबल इच्छा,

दर्शन हित जाऊँ  यदा कदा।। 

रनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

रविवार, 1 दिसंबर 2024

दोहे राजनीति पर

 रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)








कस्तूरि मृग थे कम्पू, तीर चला था एक।

बधिक बन बैठा राजा, घायल हुये अनेक।।


गुंडों को धंधा मिला, राजनीति के संग।

टैक्स वसूली कर रहे, हो रहे लोग तंग।।


जातिवाद के सामने,बौना दिखता देश।

सत्ता के लोभी सदा, फैलाते     विद्वेष।।


रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

विप्र सुदामा - 56

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) भामा मुख  से जब  सूना, दर्शन  करना हो वीतरागी। या तीर्थयात्रा पर हो ...