सोमवार, 9 दिसंबर 2024

विप्र सुदामा - 55

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)











राजन   मित्र    वीतरागी, 
दिव्य  पुरुष  ब्रह्म  ज्ञानी।
अकेले जाना अरु  दर्शन,
अकेले मिलता पुण्य नहीँ।।

दिव्य पुरुष के हों दर्शन,
या  जाना  हो  तीर्थाटन।
अकेले अकेले ही जाना,
अकेले मिलता पुण्य नहीं।।

राजन धर्म  की रीति यही,
पत्नी संग  हों दिव्य दर्शन।
वामांगी संग हो तीर्थ यात्रा,
अकेले  मिलता पुण्य नहीँ।।

राज काज  है भव जंजाल,
इसमें मेरी कोई रूचि नहीं।
राजन हम भी चलना चाहें,
अकेले  मिलता पुण्य नहीँ।।

नाथ अब  क्या सोच विचार,
हम  भी  हैँ चलने को तैयार।
अब हैँ किस दुविधा में आप,
अकेले  मिलता  पुण्य  नहीं।।
- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विप्र सुदामा - 56

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) भामा मुख  से जब  सूना, दर्शन  करना हो वीतरागी। या तीर्थयात्रा पर हो ...