-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
चलते चलते थके सुदामा।
लेट गये थे अवनि पर।।
दूभ घास मखमल चादर।
डुलाये पंख पवन सादर।।
मानव गंध पहुँची कानन।
वनराज पास आ धमका।।
देख सुदामा भूमि पर।
सिंह भी बैठा भूमि पर।।
गहरी नींद सुदामा थे।
मन में बसे कान्हा थे।।
ब्रह्म मुहूर्त का समय था।
खुल गई नींद सुदामा की।।
उडगन भी विलुप्त हो रहे।
नभ में थे अब धीरे धीरे।।
सुदामा बैठा देख अकेले।
ऊषा मुस्काये धीरे धीरे।।
सुदामा ने आँखे खोली अब।
ध्यान से देखा इधर उधर।।
दिख रही पताका सम्मुख थी।
द्वार पर लिखा था द्वारिकापुरी।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर।©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें