-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
प्रेमचंद का है साहित्य,
दर्द युक्त मानवता का।
एक नमूना प्रस्तुत है,
दर्द युक्त मानवता का।।
हामिद दादी बिन चिमटा,
नित रोटी सेंकैं चूल्हे में।
हामिद नन्हा बालक था,
पर दर्द समझता दादी का।।
दो पैसे दिये थे दादी ने,
जब अवसर आया मेले का।
मेले से लाया हामिद चिमटा,
दर्द मिटाने दादी का।।
चिमटा जब देखा दादी ने,
हामिद के दोनों हाथों में।
मन में वह आल्हादित थी,
पर अश्रु भरे थे आँखों में।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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