-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
द्वारपाल पूंछहि सुदामा।
विप्र! कैसे पुरी के द्वार?
क्या किसी ने तुम्हे सताया।
पकड़ बुलाऊँ शीघ्र अभी।।
विप्र अब भोजन करिये।
ताज़ा बना है अभी अभी।।
अभी लाया मैं जामा पगड़ी।
पहनो जामा बाँधो पगड़ी।।
पैरों में पहनिये विप्रवर!
काष्ठ पादुका सुन्दर।।
तन में होये रोग यदि।
वैद्य बुलाऊँ शीघ्र अभी।।
धन की इच्छा होय यदि।
शीघ्र बताओ विप्र अभी।।
सुदामा थे निस्पृह भाव।
मन में नहीं थी कोई चाव।।
द्वारपाल था समझ रहा।
यह कोई सामान्य भिखारी है।।
सुदामा ब्राह्मण तत्व ज्ञानी।
लालच रहित अरु स्वाभिमानी।।
Author : Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur.
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