-- अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
फागुन में खिले टेसू के फूल,
फूलों में सुंदर टेसू के फूल। फागुन की हवा अकड़ते अंग , सबको चढ़ता होली का रंग।। दादी थिरक रहीं अंगना में, दादा मारे रंग पिचकारी। बिटवा ढोल बजाय रहे, बहुएं थिरकें दे तारी।। पोता-पोती रंग उड़ाएं, उछलें दे दे तारी। घर-घर बाजैं ढोल मंजीरा, घर-घर उत्सव भारी।। -- लेखक एवं रचनाकार, अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। |
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