-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर,कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
खेलत खेलत एक दिवस,
कान्हा पहुँचे वृषभानु गली।
देख दुवारे वृषभानु खड़े,
कान्हा पूंछे वृषभानु लली।।
कान्हा द्वार पुकार रहे,
बाहर आओ मेरी लली।
बाहर आई वृषभानु लली,
खेलन चलिहौ मेरी गली।।
ताही समय अधराधार वंशी,
गूँज गई वृषभानु। गली।
आगे आगे कान्हा चलि रहे,
पीछे पीछे वृषभानु लली।।
--©लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपुर।
नंदलाल की बंसी में बसती है वृषभानु लली। .. बहुत सुन्दर
https://www.youtube.com/watch?v=z34Xha_vQFE
आभार आपका।
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