-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
धरती प्यासी जान के ,जलघर पहुंचे धाय।
जलधर बरसे झूम के ,धरा मगन हो जाय।।1।।
जलधर देखे गगन में, केकी हर्षित होय।
जलधर बरसे झूम के, कृषक मगन हो जाय।।2।।
प्रेम धरा का मेघ से, विधि ने दिया बनाय।
जब भी भू व्याकुल दिखे, घन गरजे हरसाय।।3।।
-- लेखक एवं रचनाकार -अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 22 जुलाई 2022 को 'झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये बाग के' (चर्चा अंक 4498) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंबहुत ही सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत आभार।
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