--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
बंधु
बंधु दिखें गाढ़े काम, या जो करता नेह।
जिमि बरगद की वायु जड़,पोषण करती देह।।1।।
लोकतंत्र
भ्रष्टाचार दिन दूना, मानवता का ह्रास।
समाज सेवा पास नहि,लोकतंत्र परिहास।।2।।
व्यर्थ
वर्षा वृथा समुद्र में, धनकहि देना दान।
दिन में दीपक वृथा जनु, तृप्तहि भोजन मान ।।3।।
-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर,कानपुर ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंवाह! सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी! बहुत बहुत आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी! बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंभारती जी ! बहुत बहुत शुक्रिया।
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