-अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
यथार्थ
रूप यौवन संपन्ना, होय जु विद्या हीन।
बिना गन्ध किंशुक यथा, दिखे रंग रंगीन।।1।।
निन्दा
गुणी की निंदा तब तक, जब तक नहि गुण भान।
भीलनि रुची गुंजा फल, नहि गज मुक्ता ज्ञान।।2।।
विश्वास
मीत कुमीत दोऊ का, मत कीजे विश्वास।
मीत कबहूँ कुपित भयो, करे भेद परकास।।3।।
--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर ।
-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी ! आप का आभार।
हटाएंबहुत सुंदर नीति परक दोहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
आप का बहुत बहुत आभार।
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