-अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
उड़ जा पंछी अनंत पथ पर,
छोड़ दे अपना नीड़।
ऐसे उड़िये उड़ते जाओ,
स्वयं बना लो अपना नीड़।।
चमको ऐसे विश्व पटल पर,
जैसे चमकें चांद सितारा।
अडिग रहो अपने पथ पर,
जैसे रहता है ध्रुव तारा।।
कितने भी आयें झंझावात,
अडिग रहो शिला बन कर।
मातृ भूमि का मान सदा उर में,
बढ़ जाओ अग्र दूत बन कर।।
कवि : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
बहुत ही उत्तम गुरूवर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएं'मयंक'जी बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंहौसला बढ़ाती हुई बहुत ही शानदार रचना
जवाब देंहटाएंशानदार टिप्पणी के लिए मनीषा जी का आभार।
जवाब देंहटाएंप्रेरक उद्बोधन देती रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक।
बहुत बहुत आभार आप का।
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना
जवाब देंहटाएंअनीता जी! बहुत बहुत आभार।
हटाएंआशा और प्रेरित देते भाव ... बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंआप का हृदय से बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंवाह! सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी आप का बहुत बहुत आभार।
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