बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

आज यहां कल वहां है डेरा

 कवि: अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र






आज यहां कल वहां है डेरा,

कोउ नहिं जाने  कहां सबेरा।

कभी     मातु     की    गोद,

कभी  किलकारी  आंगन में।

कभी    भ्रात      के    साथ,

कभी     इकला    बागन में।

सारा   जीवन   ऐसे    बीता,

जैसे  गली   गली    बंजारा।

आज यहां  कल  वहां  है डेरा,

कोउ नहि  जाने  कहां  सबेरा।

कोउ नहि  जाने  इस  जग में,

कब कौन किसका बने सहारा।

जीवन  जन्म-मरण   का  फेरा,

आज  यहां  कल  वहां  है डेरा।

Author : Ashrafi Lal Mishra, Akbarpur,Kanpur .

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०२ -२०२२ ) को
    'मान बढ़े सज्जन संगति से'(चर्चा अंक-४३४५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मिश्र जी, नमस्ते. रफ़ी साहब का गीत याद दिला दिया आपने ....बस्ती-बस्ती परबत-परबत गाता जाए बंजारा , लेकर मन का इकतारा. लोकगीत जैसी मिठास.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुंदर टिप्पणी के लिये आप का बहुत बहुत आभार।

      हटाएं
  3. जीवन के सत्य का सुंदर वर्णन, गहन भाव रचना।
    आध्यात्मिक सी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. टिप्पणी में आप की योग्यता परिलक्षित है। शानदार टिप्पणी के लिए आप का हृदय से बहुत बहुत आभार।

      हटाएं

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