कवि : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
सुनहरी साड़ी में लिपटी,
प्राची खड़े खड़े मुस्काये।
देख धरा पर बिखरे मोती,
प्राची खड़े खड़े मुस्काये।।
पात पात पर बिखरे मोती,
कलियाँ धीरे से मुस्काएं।
अचानक आ धमका माली,
गुम हो गई प्राची की लाली।।
सहस्त्र करों से समेट मोती,
अट्टहास कर रहा माली।
प्राची हो गई अब उदास,
उल्टे पांव निज निवास।।
कलियाँ थीं अब तक बाचाल,
अब इकटक देखें माली।
माली देखें इकटक कलियाँ,
खुशी में फूली सारी कलियाँ।।
-रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०२ -२०२२ ) को
'यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ' (चर्चा अंक-४३३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी!
हटाएंजॉन साहब का शेर है कि
जवाब देंहटाएं"बागबां हम तो इस ख्याल के हैं
देख लो फूल फूल तोड़ो मत।"
बहुत ही सुंदर रचना, जो चित्र आपने शब्दों के माध्यम से खींचा है वो बेहद खूबसूरत है।
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आभार।साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबाग़बा जब सृजन को निहारता है … स्रजित और निखर जाता है …
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना …
आभार।
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।साधुवाद।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआभार आप का।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंमीना जी आप का बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंउत्कृष्ट शिल्प एवं सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं साधुवाद।
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