गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

सुनहरी साड़ी में लिपटी

 कवि : अशर्फी लाल मिश्र


अशर्फी लाल मिश्र






सुनहरी साड़ी में लिपटी,

प्राची खड़े खड़े मुस्काये।

देख धरा पर बिखरे मोती,

प्राची खड़े खड़े मुस्काये।।


पात पात  पर बिखरे मोती,

कलियाँ  धीरे   से  मुस्काएं।

अचानक आ  धमका माली,

गुम हो गई प्राची की लाली।।


सहस्त्र करों से समेट मोती,

अट्टहास  कर  रहा   माली।

प्राची हो गई अब उदास,

उल्टे पांव निज निवास।।


कलियाँ थीं अब तक बाचाल,

अब   इकटक  देखें    माली।

माली देखें  इकटक  कलियाँ,

खुशी में फूली सारी कलियाँ।।


-रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।





16 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०२ -२०२२ ) को
    'यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ' (चर्चा अंक-४३३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. जॉन साहब का शेर है कि
    "बागबां हम तो इस ख्याल के हैं
    देख लो फूल फूल तोड़ो मत।"
    बहुत ही सुंदर रचना, जो चित्र आपने शब्दों के माध्यम से खींचा है वो बेहद खूबसूरत है।
    नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

    जवाब देंहटाएं
  3. बाग़बा जब सृजन को निहारता है … स्रजित और निखर जाता है …
    भावपूर्ण रचना …

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार एवं साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं

विप्र सुदामा - 56

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) भामा मुख  से जब  सूना, दर्शन  करना हो वीतरागी। या तीर्थयात्रा पर हो ...