द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
माई हम तो गई थी पनियाँ भरन।
मारग में मिल गये मुरली धरन।
एक पैर से खड़े, बांकी थी चितवन।
कटि थी तिरीछी कटि में करधन।
माई शोभित मुरली उनके अधरन।
हम भूल गई माई पनियाँ भरन।
माई छूट गये घट गिर गए धरनि।
माई हम नाहीं जैहैं पनियाँ भरन।।
© कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर।
बहुत ही सुंदर रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।।।।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद। बहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर लेखन
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंदीदी विभा रानी बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर मधुर आंचलिक माधुर्य लिए सरस सृजन।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद। बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएं