द्वारा: अशर्फी लाल मिश्र
एक तरफ जनतंत्र की शहनाई,
दूसरी तरफ कोरोना का कहर।
एक तरफ जनतंत्र का नशा,
दूसरी तरफ प्राणों की बाजी।।
आज तंत्र के सम्मुख,
हुआ जन बौना।
कैसा जनतंत्र ?
कैसा जन महोत्सव ?
कितनी मातायें बिना लाल के,
कितने लाल बिना माताओं के।
कैसी विडंबना है दैव की,
फिर भी गूंजे शहनाई कानों में ।।
आज जन हारा है,
तंत्र ने बाजी मारी है।
प्राणों के भय से,
'लाल' घर में दुबक रहा।।
कवि: अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर,कानपुर।
बिल्कुल सही और स्पष्ट पद्य पंक्तियाँ हैं आपकी , समाज के मौजूदा हालात बयाँ करती हुई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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