अशर्फी लाल मिश्र
प्रतिष्ठा
काम हमेशा कीजिये ,जो नाक ऊँची होय। अपनी भी इज्जत बढ़े ,घर की इज्जत होय।।-[1]
[नाक ऊँची होना -एक मुहाविरा है जिसका अर्थ है प्रतिष्ठा प्राप्त करना ] अर्थ : व्यक्ति को सदैव ऐसा कार्य करना चाहिए जिसमें प्रतिष्ठा प्राप्त हो। इससे समाज में स्वयं का और परिवार का मान बढ़ता है।
साधु /संत
मन संशय नाहीं दूर , कैसे संत कहाय। काम राग छूटे नहीं ,फिर भी संत कहाय।।-[2]
अर्थ : संत वही है जिसके मन का संशय दूर हो गया हो लेकिन यदि साधु वेशधारी के मन में कोई संशय है उसे हम संत कैसे कह सकते है अर्थात उसे संत नहीं कहा जा सकता। अगर किसी व्यक्ति में काम और राग शेष है तो केवल वेश भूषा से उसे संत कहना उचित नहीं होगा।
आँख देखे सारा जग ,खुद नहि देखी जाय। जो खुद देखै आप को ,वही साधु कहलाय।।-[3]
अर्थ : व्यक्ति की आँखें सम्पूर्ण संसार को देखती हैं लेकिन आँखे अपने आप को देखने में असमर्थ हैं लेकिन यदि व्यक्ति स्वयं का आत्म साक्षात्कार (गुण दोषो का ज्ञान ) करे तो निश्चित ही वह व्यक्ति साधु कहलायेगा।
खाते खाद्य अखाद्य जो ,करते पापाचार। त्यागहु ऐसे साधु को ,मति करियो सत्कार।।-[4]
अर्थ : यदि को कोई साधु वेषधारी व्यक्ति अखाद्य (मांस ,मदिरा आदि ) का स्तेमाल करता हो। पाप कर्म में लिप्त हो तो ऐसे साधु को सदैव के लिए त्याग देना चाहिए और कभी भी उसका सम्मान नहीं करना चाहिए।
संत धरणि पर पग धरहि,धरणि धन्य होइ जाय। संत चलहि नहि धरणि पर ,नभ में उड़ उड़ जाय।।-[5]
अर्थ : वह भूमि धन्य है जिस भूमि पर संत विचरण करते हैं लेकिन आज के संत धन वैभव में लिप्त हैं जो भूमि पर पैदल न चल कर अपनी यात्रा वायुयान से करते हैं।
लोकतंत्र
क्रिमिनल से नेता होय ,पावै आदर भाव। जिमि तांबा मिलि कनक में ,बिकै कनक के भाव।।-[6]
अर्थ : जिस प्रकार तांबा सोना में मिलकर सोना जैसा मूल्यवान हो जाता है उसी प्रकार अपराध प्रवृत्ति (क्रिमिनल) का व्यक्ति जब राजनीति में प्रवेश कर नेता बन जाता है तो उसका समाज में सम्मान बढ़ जाता है।
राजनीति में प्रविशि कर ,वाणी रगड़ नहाय। जीवन का सब मैल धुलि ,उत्तम कीरत पाय।।-[7]
अर्थ : एक क्रिमिनल जब राजनीति में प्रवेश करता है तो अपने भाषण में उच्च आदर्शों की झड़ी लगा देता है इस प्रकार पिछले सम्पूर्ण अपराध जनता की निगाह से ओझल हो जाते हैं और जनता में उसका सम्मान बढ़ जाता है।
चुनाव आते फूटता ,जातिवाद नासूर। ध्रुवीकरण हो मतों का, प्रयास हो भरपूर।।-[8]
अर्थ : जिस प्रकार से नासूर का इलाज आसान नहीं है उसी प्रकार भारतीय लोकतंत्र में चुनाव के अवसर पर फूटने वाले जातिवादी नासूर को रोकना मुश्किल है। जातिवाद के आधार पर टिकट ,जातिवाद के आधार पर मतों का ध्रुवीकरण का प्रयास होता है।
जन प्रतिनिधि परहेज करें ,जनता से भी भेंट। जनसेवा से अधिक रूचि , भावैं माला भेंट।।-[9]
अर्थ : जब एक नेता जन प्रतिनिधि बन जाता है तब वह जनता के बीच जाने से परहेज करता है। धीरे धीरे जनप्रतिनिधियों में समाज सेवा कम और माला पहिनने और भेंट स्वीकार करने रूचि अधिक बढ़ रही है।
दल बदलु का दल बदला , दिल नहि बदला जाय। धरिणी गगन मिलत दिखें ,फिर भी क्षितिज कहाय।।-[10]
अर्थ : जिस प्रकार पृथ्वी और आकाश जहाँ मिलते प्रतीत होते है उस काल्पनिक रेखा को क्षितिज कहते हैं अर्थात क्षितिज ही पृथ्वी और आकाश को अलग अलग करती है उसी प्रकार किसी दल के मूल सदस्यों और दल बदलुओं के बीच एक काल्पनिक रेखा होती है जो उन्हें अलग अलग पाले में बनाये रखती है क्योंकि दल बदलू का कभी दिल नहीं बदलता।
जनतंत्र राजहि नेता ,वन राजहि वनराज। दोनों गरजें राज में ,करते अपना काज।।-[11]
अर्थ ; नेता लोकतंत्र में और शेर वन में सुशोभित होता है दोनों ही अपने अपने राज्य में स्वतंत्रता पूर्वक राज्य करते हैं।
क्रिमिनल चुनाव मैदान ,खूब होइ मतदान। क्रिमिनल पहुँचहि सदन में , सबसे ज्यादा मान।।-[12]
अर्थ : यदि चुनाव के मैदान में क्रिमिनल प्रत्याशी है तो बिना चुनाव का प्रचार किये क्रिमिनल प्रत्याशी के पक्ष में मतदान होता है और चुनाव में विजयी होकर सदन भी पहुँच जाता है। ऐसे क्रिमिनल विजेता जन प्रतिनिधि का सबसे ज्यादा मान भी होता है।
मानवता अब मर चुकी , वोट बैंक की बात। राष्ट्र हितइ पीछे हुआ ,हो निज हित की बात।।-[13]
अर्थ : अब नेताओं में पहले जैसी मानवता नहीं है उनका लक्ष्य केवल निज हित और वोट बैंक तक ही सीमित रहता है। निज हित के आगे राष्ट्र हित भी कमजोर दिखाई पड़ने लगता है।
निष्पक्ष
अपने को हानि न होय,मन में करो विचार। किसी के बहकावे में , मत बनिये हथियार।।-[14]
अर्थ : व्यक्ति की निष्पक्ष विचारधारा सदैव उत्तम होती है। किसी काम को करने पूर्व अच्छी तरह सोच समझ कर काम करना चाहिए। कभी किसी के बहकावे आकर कोई गलत काम नहीं करना चाहिए और न कभी किसी के हथियार बन कर काम नहीं करना चाहिए।
शिक्षक
मुंह में पान मशाला ,ऐसे गुरुवर आज। आँखों में चश्मा काला ,देते शिक्षा आज।। -[15]
अर्थ : शिक्षक समाज का दर्पण है.शिक्षक राष्ट्र का भविष्य निर्माता है जिसके चरित्र का प्रभाव छात्रों सहित सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है। उसका चरित्र एवं निजी जीवन समाज के लिए आदर्श होना चाहिए लेकिन आज कल शिक्षक आँखों में धूप का काला चश्मा एवं मुँह में पान मशाला खाकर कक्षा शिक्षण करते हैं जो निश्चित उनके पद की गरिमा के प्रतिकूल है।
भ्रष्टाचार
काला धन जिन चाहिये , ढूंढें सुरक्षित गेह। मगर मुंह में पग पकड़ ,गहरे पानी खेह।।-[16]
अर्थ : जिस प्रकार मगर अपने शिकार को पकड़कर गहरे पानी में घसीटकर छिपा देता है उसी प्रकार काला धन अर्जित करने वाला व्यक्ति भी उस काले धन को सफ़ेद करने के लिए सुरक्षित उपाय ढूंढता है।
भ्रष्टाचार रग रग में ,फैला चारो ओर। कौन विधि ते देश बढ़े ,बढ़े कमीशन खोर।।-[17]
अर्थ : आज राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है। चाहे नौकरशाही हो , राजनीति हो , सेवा का क्षेत्र या फिर व्यापार का क्षेत्र हर कहीं भ्रष्टाचार। सेवा और व्यापार बिना कमीशन के संभव ही नहीं। कवि चिंता प्रकट करता है कि भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी के कारण देश की प्रगति प्रभावित हो रही है।
लोक सेवक राजनीति ,गठबंधन जब होय। भ्रष्टाचार दिन दूना ,यह जानत सब कोय।।-[18]
अर्थ : कवि चिंता प्रकट करता है यदि नौकरशाही का राजनीति से गठबंधन हो गया तो भ्रष्टाचार गुणोत्तर विधि से रात -दिन बढ़ता ही रहेगा उसे रोक पाना अत्यंत दुष्कर होगा इसलिए हर संभव प्रयास होना चाहिए कि राजनीति का नौकरशाही से गठजोड़ न होने पाए।
काले धन से खुल रहे ,राजनीति के द्वार। जनता को गुमराह कर , चाह सदन दरबार।।-[19]
अर्थ : राजनीति में समाज सेवा से खुलने वाला द्वार लम्बा और कठिन भी है और काले धन से राजनीति में प्रवेश सुगम और संक्षिप्त है। लोकतंत्रीय शासन में जिसके पास काला धन है उसे राजनीत में प्रवेश करना आसान है। अपनी भाषण कला से जनता को गुमराह कर किसी भी सदन पहुंचना आसान है।
नौकरशाही मीडिया,यदि गठबंधन होय। समझो भ्रष्टाचार अति ,यह जानत सब कोय।।-[20]
अर्थ : यदि जनतंत्रीय शासन में नौकरशाही का जनतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया से गठबंधन हो गया तो समझो भ्रष्टाचार गुणोत्तर बिधि से बढ़ेगा और भ्रष्टाचार का पता भी नहीं लगेगा क्योंकि तब मीडिया नौकरशाही के गुणगान में ही व्यस्त होगी। इस तथ्य से जनता भी अवगत है।
कर्म
कर्महि बदले भाग्य को ,कर्महि बदले सोच। अजगर सोचे उदर की ,नाहीं बदले सोच।।-[21]
अर्थ : कर्म से भाग्य बदलता है और कर्म से विचारधारा। जो आलसी है जो कर्महीन है उसक का न भाग्य बदलता है और न ही विचारधारा। जैसे अजगर की चिंता केवल अपने उदर की भूंख शांत करने की रहती है इसीलिए अजगर भूंख शांत होने पर एक ही जगह पड़ा रहता है।
संकट
प्रबल प्रवाह दरिया का ,ठहरो करो विचार। संकट काम आवै नाव ,करती दरिया पार।।-[22]
अर्थ : यदि जीवन में अचानक कोई संकट आ जाय तो धैर्य पूर्वक विचार करना चाहिए कि इस संकट से कैसे बचा जा सकता है। यदि प्रकार यात्रा के बीच सामने नदी की प्रबल धारा आ जाय तब हमें नदी पार करने के लिए नाव चाहिए जो सम्मुख बहती नदी की धारा को पार करा सकती है।
प्रेम
प्रेम हिरदय में जनमे ,नहि चाहे प्रतिदान। चाहत यदि प्रतिदान की ,उसे वासना जान।।-23]
अर्थ : इस दोहे में प्रेम और वासना अंतर बताया गया है। प्रेम ह्रदय की अनुभूति है। प्रेम एक पक्षीय और द्विपक्षीय भी हो सकता है लेकिन द्विपक्षीय प्रेम होना अनिवार्य नहीं। जैसे चकोर पक्षी का चन्द्रमा से प्रेम,भक्त का भगवान् से प्रेम आदि एक पक्षीय प्रेम के उदहारण हैं । यदि कोई प्रेम करने वाला दूसरे पक्ष से प्रेम की आशा करता है तो उसे प्रेम न कह कर वासना कहेंगे। पीड़ा
जानै पीड़ा न समझे , बनता हो अनजान। मत कहिये पीड़ा ताहि ,उसका दिल श्मशान।।-24]
अर्थ : यदि कोई व्यक्ति आप का कष्ट जनता है और वह यह कहता है कि हमें आप के इस कष्ट के बारें में नहीं मालूम है तो ऐसे व्यक्ति से कभी भी अपना कष्ट या समस्या नहीं बतानी चाहिए क्योंकि उसका हृदय श्मशान की तरह संवेदनहीन है।
प्रकृति
धरिणी इक टक देख रही ,कब वारिद दिख जाय। उमड़ घुमड़ वारिद दिखे ,धरा मगन हुइ जाय।।-[25]
अर्थ : जब सूर्य के ताप से पृथ्वी विचलित होने लगाती है तब उस ताप को शांत करने के लिए पृथ्वी टकटकी लगाकर आसमान की और देखती है कि मेघों के दर्शन हो जाय और जैसे ही आसमान में मेघों की घटा दिखाई पड़ती है वैसे ही धरती मेघों को देखकर मगन हो जाती है।
दामिनि दमक मेघ कड़क ,जल से धरा नहाय। पुलकित हुई धरिणी अब ,धरा तृप्त हुइ जाय।।-[26]
अर्थ : प्रस्तुत दोहे में वर्षा का सजीव वर्णन है। जब बिजली चमक के साथ आसमान में बदल गरजे, घनघोर वर्षा हुई और पृथ्वी पर जल ही जल दिखाई पड़ने लगा तब कहीं जा कर पृथ्वी पुलकित हुई। इस प्रकार पृथ्वी का ताप शांत हुआ।
संतान
संतान की करनी से ,कुल की इज्जत होय। संतान की करनी से ,वंश कलंकित होय।।-[27]
अर्थ : व्यक्ति को सदैव ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे कुल (वंश) की प्रतिष्ठा बढ़े। व्यक्ति को कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसके कुल की प्रतिष्ठा गिरे क्योंकि व्यक्ति के कार्य से ही कुल की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है।
लोक सेवक
कहने को लोक सेवक ,वह साहब कहलाय। डिजिटल सुनता नहि कोइ ,फरियादी बुलवाय।। -[28]
अर्थ :इस दोहे में लोकसेवक की मानसिकता का वर्णन है। जो व्यक्ति राजकोष से वेतन पाते हैं सभी लोक सेवक कहलाते हैं। जनतंत्र में साहब प्रणाली समाप्त है। यदि कोई व्यक्ति डिजिटल समस्या भेजता है उसकी उपेक्षा करते हैं और चाहते हैं कि समस्या का हल साहब प्रणाली से हो।
विश्वास
अचानक देय भरोसा ,मति करियो विश्वास। सावधानी तब बरतौ ,बहुतै होइ हि खास।।-[29]
अर्थ : इस दोहे में विश्वास पर प्रकाश डाला गया है। अचानक आप के पास आकर कोई यह विश्वास देने लगे कि अमुख व्यक्ति ने बुलाया है या धन की मांग करने लगे तो इस अवसर पर थोड़ा सावधान हो जाइये। यदि कोई ख़ास अपना व्यक्ति हो तो भी सावधानी की जरूरत है।
प्रेम
पाती अब इतिहास है ,डिजिटल दर्शन होय। अब हिय पीड़ा अश्रु बन ,प्रिय के सम्मुख होय।।-[30]
अर्थ : किसी समय अपने प्रिय को सन्देश के लिए पत्र लिखे जाते थे या दूती /दूत द्वारा प्रेम पत्र / सन्देश भेजने की प्रथा थी लेकिन आज पत्र /पाती इतिहास की बात है आज जब चाहें जिससे चाहें डिजिटल माध्यम से केवल बात ही नहीं कर सकते बल्कि अपने प्रिय के सम्मुख आंसू बहाते हुए अपने ह्रदय की पीड़ा भी व्यक्त कर सकते हैं।
सम्भाषण
मूर्ख मानै बात मान , लोभी पैसा पाइ। सुधी मानै सच बोले ,घमण्डि आदर पाइ।।-[31]
अर्थ : मूर्ख व्यक्ति से बात करने में उस व्यक्ति की बात मान लेने में ही भलाई है अर्थात आप मूर्ख व्यक्ति की बात में हाँ करने से उसे मना सकते हैं। यदि लोभी व्यक्ति को मनाना हो तो उसे कुछ धन देकर मना सकते हैं। लेकिन यदि विद्वान व्यक्ति को मनाना हो तो उसके सामने सत्य बोलिये और यदि कहीं अभिमानी या घमण्डी व्यक्ति से भेंट हो उसे आदर पूर्वक स्थान दीजिये।
सत्य
सत्य सब काल में सत्य , सत्य काटा न जाय। सत्य कभी डरता नहीं ,भले काल आ जाय।।-[32]
अर्थ : सत्य सदैव सत्य होता है इसे झुठलाया नहीं जा सकता। सत्य बोलने वाला सदा निर्भीक होता है भले ही कोई सत्य बोलने वाले का सिर काट दे परन्तु वह सत्य बोलना नहीं छोड़ेगा।
झूला
सावन में झूला नाहि ,न पैंग देखी जाय। अब गीत बने इतिहास ,गीत न गाये जाय।।-[33]
अर्थ : समय के साथ साथ समाज में बदलाव होता रहता है कभी सावन के प्रारम्भ होते ही श्रावण महोत्सव प्रारम्भ हो जाता था. श्रावण मास लगते ही हर घर में, पेड़ों की शाखाओं में, बागो में झूले ही झूले दिखाई पड़ते थे लेकिन आज सावन में न झूले दिखाई पड़ते हैं ,न कोई पैंग बढ़ाने वाला और न ही कोई कजरी गीत सुनाई पड़ते हैं। अब सावन के झूले और कजरी गीत ऐतिहासिक हो गए हैं।
परिवर्तन
बदला बदला हर कोइ ,बदल रही है सोच। माता पिता अलग रहें ,बेटा की है सोच।।-[34]
अर्थ : समय के साथ साथ भारतीय संस्कृति में भी बदलाव दिखाई पड़ रहा है पहले संयुक्त कुटुंब की प्रथा थी लेकि आज कल एकल कुटुंब की प्रथा का प्रचलन बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में आत्म निर्भर बेटा भी अपने माता पिता से अलग रहना पसंद करने लगे हैं।
नीति हो या अनीति हो , या होय राजनीति। हर तरफ अपना अपनी , न दिखे नीति अनीति।।-[35]
अर्थ : आज हर क्षेत्र में अपना हित सर्वोपरि है। अपने हित में नीति अनीति में कोई भेद ही नहीं दिखाई दे रहा है। जीवन में चाहे वह सेवा का क्षेत्र हो ,व्यापार हो या फिर राजनीति का क्षेत्र हो। अब तो राजनीति में भी समाज सेवा के स्थान पर उत्तराधिकार का प्रचलन बढ़ रहा है।
बदल रही है संस्कृती ,बदल रहा इंसान। बेटा बेटा अब नहीं ,बेटी बेटा जान।।-[36]
अर्थ : आज समाज में ऐसा बदलाव आ रहा है या यों कहें कि व्यक्ति की ऐसी सोच बदल रही है कि आज बेटों में माता -पिता के प्रति कर्तव्य भावना का धीरे धीरे ह्रास हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें कि बेटों में बेटियों की अपेक्षा संवेदन शीलता की कमी है। आज बेटियाँ अपने माता -पिता के प्रति बेटों से अधिक संवेदनशील हैं।
नेता
परिवार का कद ऊँचा ,सोहरत साथ होय। मीडिया को लेय साथ ,नेता बनता सोय।।-[37]
अर्थ : आज राजनीति में उतरने के लिए समाज सेवा की कोई जरूरत नहीं है। एक अच्छे नेता बनने के लिए धन- वैभव हो, लोगों के मध्य आप का नाम प्रचलित हो जैसे अभिनेता,खिलाडी,अधिकारी आदि के रूप में। प्रचार के लिए जो मीडिया को साथ लेता है वही नेता बनता है। घर का शत्रु
चुगुलखोर होय घर का ,कबहुँ न रोका जाय। न करियो विश्वास ताहि ,भले हि तीरथ जाय।।-[38]
अर्थ : यदि किसी के घर का सदस्य घर की बात बाहर कहता है। उसे घर का चुगुलखोर कहेंगे। घर के चुगुलखोर को रोकना बहुत ही मुश्किल है। ऐसा चुगुलखोर व्यक्ति का , भले ही वह तीर्थ यात्रा करके आया हो विश्वास नहीं करना चाहिए।
मित्र
सम्मुख हो मीठा बोल ,पिछे बिगाड़इ काम। छोड़ो ऐसे मीत को ,करो अकेले काम।।-39]
अर्थ : अगर आप का कोई मित्र आप के सम्मुख मीठी बात करता हो और पीठ पीछे आप का काम बिगाड़ता हो या हानि पहुंचाता हो तो तुरंत ही बिना किसी देरी के ऐसे मित्र का परित्याग कर देना चाहिये तथा अपना हर काम स्वविवेक से अकेले ही करना उचित होगा।
मीत सदैव शुभ चिंतक ,विपत न छोड़े साथ। ऐसे मीत मनाइये , दौड़ो लाओ साथ।।-[40]
अर्थ ; मित्र वही है जो सदैव आप का शुभ चिंतक हो और संकट काल में भी आप का साथ न छोड़े।यदि संकट काल में साथ देने वाला मित्र किसी कारणवश आप से नाराज हो जाय तो उसे मनाइये और अपने साथ रखिये।
परिछाईं संकट काल ,धीरज देता होय। स्वार्थ रहित हो भावना ,मीत जानिये सोय।।-[41]
अर्थ : सच्चा मित्र वही है जो संकट काल में परिछाईं की तरह साथ रहता हो और संकट के समय आप को धैर्य देता हो तथा किसी भी प्रकार की स्वार्थ भावना न हो।
विश्वास
भले हि हो अच्छा मीत ,कम करियो विश्वास। मीत होइ यदि नाराज ,खोल भेद उपहास।।-[42]
अर्थ : आप का भले ही कोई अच्छा मित्र हो लेकिन बहुत अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि किसी कारण से आप का मित्र आप से नाराज हो गया तो आप का सम्पूर्ण गोपनीय रहस्य अन्य लोगों के बीच उजागर कर देगा जिससे आप उपहास के पात्र हो सकते हैं तथा भविष्य में हानि उठानी पड़ सकती है।
लक्ष्य
लक्ष्य सदैव ऊँचा होय ,चढ़ जाओ सोपान। चंदयान दो चढ़ गया ,भारत बना महान।।-43]
अर्थ : जिस प्रकार भारत ने गौरवशाली ऊंचे लक्ष्य को ध्यान में रखकर चंद्रयान-2 को चन्द्रमा पर भेजकर सफलता हासिल की .जिससे भारत की कीर्ति विश्व में बढ़ी। उसी प्रकार व्यक्ति का लक्ष्य सदैव ऊंचा होना चाहिए और उसे सफलता की सीढ़ी पर तेजी से बढ़ना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर का विलय
कश्मीर भारतहि मुकुट ,भारत की है शान। कश्मीरी अब भारतिय ,भारत की पहिचान।।-44]
अर्थ : कश्मीर भारत का मुकुट सदृश अभिन्न प्रदेश है। कश्मीर ,कश्मीरी और कश्मीरियत भारत के लिए गौरवपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 समाप्त होने पर कश्मीर का भारत में पूर्णरूपेण विलय हो गया है और अब हर कश्मीर प्रदेशवासी भारत के बाहर अपने को भारतीय कहने में गर्व महसूस करेगा।
दो दिल यदि मिलते दिखें , तीजे ईर्ष्या होय। भारत कश्मीर इक हुइ , पाकहि पीड़ा होय।।-[45]
अर्थ : कश्मीर के भारत में विलय के पश्चात् पाकिस्तान को उसी तरह पीड़ा हो रही ही है जिस तरह से दो दिलों के मिलने पर तीसरे को ईर्ष्या होती है।
समाज सेवा
समाज सेवा अति दुरुह ,सबसे होती नाहि। समाज सेवा जो करे ,जन में आदर पाहि।।-[46]
अर्थ : समाज सेवा अत्यंत दुष्कर कार्य है। समाज सेवा करना सबके बस की बात नहीं है लेकिन जो भी निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करता है उसका समाज में बहुत ही आदर होता है।
मीडिया
जनतंत्रहि चतुर्थ स्तम्भ ,मीडिया हि कहलाय। निष्पक्ष संवाददाता ,सबसे आदर पाय।।-[47]
अर्थ : लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है मीडिया। इस मीडिया के कर्णधार होते हैं संवाददाता /रिपोर्टर। मीडिया की निष्पक्षता ही लोकतंत्र का मुख्य आधार है। मीडिया का निष्पक्ष संवाददाता /रिपोर्टर सबसे आदर पाता है।
रिपोर्टिंग महा दुष्कर ,सबके बस की नाहि। जनहित जिसका लक्ष्य नहि ,कभी रिपोर्टर नाहि।।=[48]
अर्थ : मीडिया की रिपोर्टिंग करना अत्यंत दुष्कर कार्य है ,जोखिम युक्त कार्य है। रिपोर्टिंग करना हर व्यक्ति के लिए संभव नहीं। सच्चा रिपोर्टर वही है जिसका लक्ष्य जनहित हो।
मीडिया खड़े पुकारे ,चाहे लेव खरीद। धनवानों के दास हम ,नेता हुए मुरीद।। -[49]
अर्थ : आज मीडिया पर ऊँगली उठ रही है। मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है कि मीडिया धनवानों की दासी है। मीडिया आज नेताओं की प्रशंसक है। सभी नेता मीडिया द्वारा अपनी प्रशंसा पाने के लिए आतुर दिखते हैं।
व्यवसाय
उत्तम राजनीति कहो ,मध्यम धंधा होय। निम्न चाकरी जानिये ,अधम किसानी होय।।-[50]
अर्थ : सभी व्यसायों में आज राजनीति सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि एक जनप्रतिनिधि बनने के लिए न शैक्षिक अर्हता की अनिवार्यता है और न ही आयु का कोई बंधन। व्यसायों में व्यापार का दूसरा स्थान है। तीसरा स्थान है नौकरी का और चौथा निम्न स्थान खेती का का माना जाता है।
कवि
कवि की कविता जानिये ,कलम बंधी न होय। निष्पक्ष उसकी लेखनी ,राष्ट्र हितहि में होय।।-[51]
अर्थ : कवि वही है जिसकी लेखनी निष्पक्ष हो , कलम पर कोई प्रतिबन्ध न हो तथा कविता वही है जो राष्ट्रहित में हो।
कर (टैक्स )
भानु भूमि रस लेय जस, तस कर दोहन होय। जन हित में जब कर लगे ,जनता हर्षित होय।।=[52]
अर्थ : जिस प्रकार सूर्य की किरणों से पृथ्वी के जल का शोषण का पता नहीं लगता कि कब जल का शोषण हो गया लेकिन जब वर्षा के रूप में पृथ्वी पर जल बरसता है तब धरती मुदित हो जाती है। उसी प्रकार सरकार को चाहिए जनता से सूर्य की किरणों की भांति कर (टैक्स) वसूल करे और वह टैक्स जनहित लगाए जिससे जनता हर्षित हो जाय।
सौतन पीड़ा
सौतन पीड़ा सौत ही ,और न जाने कोय। या फिर जानै गोपियाँ ,अधर बसुरिया होय।।-[53]
[सौत - पति की दूसरी पत्नी ]
अर्थ : सौत की पीड़ा का अनुभव केवल सौत ही कर सकती है इस पीड़ा का अनुभव कोई दूसरा नहीं कर सकता है लेकिन गोपिकाएं कृष्ण -प्रेम में इतना सराबोर थी कि कृष्ण को अपना पति ही मान बैठीं और चाहती थीं कृष्ण हमेशा गोपिकाओं से बात करें लेकिन ऐसा नहीं था कृष्ण की अभिरुचि रहती बांसुरी वादन में। गोपिकाओं को महसूस होता कि कृष्ण बांसुरी के नियंत्रण में हो गए हैं और इस प्रकार गोपिकों के ह्रदय में सौतिया डाह (सौतन पीड़ा ) का अनुभव करती थीं ।
अहंकार
अहंकार के अश्व चढ़ ,मत इठलाये कोय। मानव तन नश्वर होइ ,यह जानत सब कोय।।-[54]
अर्थ : सभी मनुष्य अच्छी तरह जानते हैं कि मानव शरीर नश्वर है फिर भी व्यक्ति अहंकार के मद में चूर रहता है और मनमानी करना चाहता है।
कपट
सत्य कभी डिगता नहीं ,असत्य टिकता नाहि। जब कपट सफलता होइ ,मानव मदांध होहि।।-[55]
अर्थ : जीवन में सत्य सदैव स्थिर होता और असत्य अस्थिर। फिर भी मनुष्य असत्य का सहारा लेता है। जब मनुष्य असत्य का सहारा लेकर कपट पूर्वक कोई सफलता पाता है तो वह मदांध हो जाता है और जब असत्य का भेद खुलता है तब व्यक्ति धराशायी होकर विनाश को प्राप्त होता है।
श्राद्ध
कृष्ण पक्षहि आश्विन मास ,करिये पितरहि मान। पितर दें आशीष सबहि ,करैं सबहि कल्यान।।-[56]
अर्थ : आश्विन (क्वांर ) माह के कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध कर सम्मान करना चाहिए। ऐसा सम्मान करने पर पूर्वज प्रसन्न होकर अपनी संतानों को शुभ आशीर्वाद देते हैं जिससे सबका कल्याण होता है।
पितर तिथि होय जलदान ,अति उत्तम सम्मान।। पितर तिथि के इतर करे, अमावसहि जलदान।।-[57]
अर्थ : यदि पूर्वजों की दिवंगत तिथि ज्ञात है तो अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। यह सम्मान सर्वोत्तम कहा जाता है लेकिन यदि दिवंगत तिथि ज्ञात नहीं है तो अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए।
माता का करिये श्राद्ध ,जब तिथि नवमी होय। मनोवांछित फल पावै , घर की उन्नति होय।। -[58]
अर्थ : सभी माताओं का श्राद्ध आश्विन माह कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को करना चाहिए इससे व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होता है तथा घर की उन्नति होती है।
मानवता धन बल जन बल होइ जब ,हर दुर्गुण छिप जाय। ऐसे बली के सम्मुख , मानवता शरमाय।।-[59]
अर्थ : जब किसी के पास धन बल और जन बल दोनों हो तो ऐसे व्यक्ति के दुर्गुणों पर अंगुली उठाने का किसी में साहस ही नहीं होता है। ऐसे बलवान व्यक्ति के सामने मानवता बौनी साबित होती है।
धनहि होड़ चारिउ ओर , नीति अनीति न जान। ऐसे धनहि संग्रह से , कबहुँ न हो कल्यान।।-[60]
अर्थ : आज धन की चारों ओर होड़ लगी है अर्थात सर्वे गुणः काञ्चन माश्रयन्ति की कहावत चरितार्थ हो रही है। इस प्रकार के धन संग्रह में नीति अनीति का कोई ध्यान ही नहीं रखा जा रहा है। ऐसे धन संग्रह से व्यक्ति का कोई वास्तविक कलयाण नहीं होता।
लूट मची बाजार में ,जो चाहे सो लूट। घटिया माल बजार में ,मिले छूट पर छूट।।-[61]
अर्थ : आज बाजार में किसी वस्तु का कोई निर्धारित मूल्य न होकर मनमाने भाव पर बिक रही है।आज बाजार में बिकने वाले माल की गुणवत्ता में भी कमी हो रही है तथा घटिया माल छूट देकर बिक रहा है।
पड़ोस
पुण्य पीढ़ियों के जान , सुन्दर होय पड़ोस। कुछ हानि होय या कष्ट , कर लीजै संतोष।।-[62]
अर्थ : यदि किसी व्यक्ति का पडोसी सुन्दर है या हितैषी है तो इसे पूर्वजों का पुण्य मानिये। यदि पडोसी से कभी कुछ हानि हो जाय या फिर कुछ कष्ट अनुभव हो तो उसे सहन कर लेना ही श्रेयष्कर होगा।
शत्रु
रिपु कितना निर्बल होय ,सदा रहें हुशियार। अवसर पाय मच्छर भी ,करता गहरी मार।।-[63]
अर्थ : शत्रु सदैव शत्रु ही रहता है वह भले ही दुर्बल प्रतीत होता हो लेकिन उससे सदैव सावधान रहना चाहिए। जैसे मच्छर मानव जाति का शत्रु है। आकार में बहुत ही छोटा है लेकिन समय पाकर मनुष्य पर वह हमला कर ही देता है।
रिपु को मत छोटा मान ,मत देखो आकार। समय पाकर चींटी भी,करती गज पर वार।।-[64]
अर्थ : शत्रु को कभी भी छोटा नहीं मानना चाहिए और आकार से उसकी शक्ति का भी अनुमान नहीं लगाना चाहिए। जैसे चींटी आकार में बहुत ही छोटी होती है लेकिन अवसर पाकर चींटी हाथी के सूंड के अंदर काट कर हाथी को मृत्यु दंड दे सकने में समर्थ है।
मशीन
कलयुग में कल की धूम ,कल से होते काम। कल से जाय संदेशा ,कल से मिलते दाम।।-[65]
अर्थ : आज कल युग का समय है जिसमें लगभग सभी काम कल (मशीन) द्वारा हो रहे हैं। आज कल (मोबाइल) द्वारा विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में सन्देश भेजे जा रहे हैं। यदि किसी को धन भेजना हो तो भी विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में इंटरनेट के माध्यम से धन भेजा जाता है यदि किसी को नकद रुपये चाहिए तो ए टी म (ATM) से रुपये निकल आते हैं। बसंत
पवन बिगड़ी बसंत की ,करिये प्रातः सैर। शरीर होय वायु मुक्त ,लाल मनाये खैर।।-[66]
अर्थ : बसंत ऋतु आने पर वायु (उदर वायु ) बिगड़ जाती है अर्थात ऋतु परिवर्तन के कारण वायु दूषित हो जाती है ऐसी स्थिति में व्यक्ति को प्रातः भ्रमण करना चाहिए जिससे शरीर दूषित वायु से मुक्त हो जाय। शरीर में जब उदर की दूषित वायु अधोमुखी न होकर उर्ध्वमुखी हो जाती है तब व्यक्ति के शरीर में कहीं भी दर्द हो सकता है तथा सिर में चक्कर आ सकते हैं।
डिजिटल
डिजिटल भारत है आज ,फिर भी धीमा काम। है चाल वही पुरानी , शासन हो वदनाम।।-[67]
अर्थ : आज भारत डिजिटल की लहार सी दिख रही है। नोटेबंदी के बाद तो कैशलेस लेनदेन तेजी से बढ़ा है लेकिन नौकरशाही में डिजिटल का असर बहुत ही कम दिखाई पड़ रहा है उसका कारण है लोक सेवक अपनी पुरानी साहब प्रणाली छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसलिए जो काम तुरंत होना चाहिए वह या तो पेंडिंग हो जाता है या फिर फर्जी निस्तारण। इससे शासन की बदनामी होती है।
राष्ट्रभक्ति
राज्य हित में कांटे भी , बन जाते हैं फूल। अरावलीय पहाड़ियां ,राणा के अनुकूल।।-[68]
अर्थ : जब व्यक्ति के ह्रदय में राष्ट्र प्रेम उत्पन्न होता है तो वह हर कष्ट भूल जाता है। कांटे भी फूल नजर आते हैं। स्वतंत्रता प्रिय महाराणा प्रताप ने कभी भी मुग़ल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और अपने खोये राज्य को पाने के लिए , पुनः युद्ध के लिए , शक्ति एवं सेना संगठन निमित्त अरावली की पहाड़ियों में कंकड़ों की शैया पर सोकर गुजारे।
स्वभाव
केहरि छोड़े न स्वभाव ,कितना बूढ़ा होय। हिंसा उसके मूल में ,कभी न सात्विक होय।।-[69]
अर्थ : प्रकृति प्रदत्त स्वभाव को बदलना आसान नहीं है। जैसे सिंह कितना भी बूढा हो जाय उसके हिंसक स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आता। सिंह मांसाहारी पशु है वह कभी शाकाहारी नहीं हो सकता।
हिंसक पशु या गंवार ,बर्रे छत्ता होय। लाल कहे दूरी रखो ,मत छेड़ो इन कोय।। -[70]
अर्थ : व्यक्ति को सदैव सामने वाले का स्वभाव जान कर व्यवहार करना चाहिए। जैसे हिंसक पशु या गंवार व्यक्ति से दूरी बनाकर रहना चाहिए। बर्रै का भी स्वभाव हिंसक होता है अतः उससे सदैव दूरी बनाकर रहें।
विषधर नहि त्यागै वीष ,भले हि दूध नहाय। जोगी तोड़े दन्त जब ,नाग हाथ में आय।।-71]
अर्थ : किसी के स्वभाव में परिवर्तन आसान नहीं होता। जैसे नाग यदि दुग्ध स्नान भी कर ले तो भी नाग का विष दूर नहीं हो सकता। जब जोगी (सपेरा) नाग को पकड़कर विष दन्त तोड़ देता है तभी सपेरा नाग को हाथ से पकड़ता है या अपने गले में नाग डाल लेता है।
कोरोना वायरस
चीन देश का वायरस ,या जैविक हथियार। बचो बचो की लगी रट ,जग में हाहाकार।।-[72]
अर्थ : कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन में हुई या चीन का यह जैविक हथियार है यह तथ्य अभी तक शंका के गर्त में है। आज सम्पूर्ण विश्व में कोरोना वायरस का भय व्याप्त है। हर देश में कोरोना वायरस से बचने उपाय ढूंढे जा रहे हैं।
कोरोना आहट जानि , पट बंद हुये आज। मानो देवो के देव ,भयभीत हुये आज।।-[73]
अर्थ : आज कोरोना वायरस का समाज में चारों ओर भय व्याप्त है। देवालयों के पट भी बंद हो गये हैं तथा आज ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो कोरोना के भय से देवो के देव महादेव ने स्वयं ही पट बंद कर लिए हैं।
कोरोना का संचरण ,वैश्विक आता जाय। एकाकी जीवन शैली ,दिखे सुरक्षित उपाय।।-[74]
अर्थ : कोरोना का विस्तार सम्पूर्ण विश्व में हो रहा है इससे बचने का एक मात्र सुरक्षित उपाय है एकाकी जीवन शैली। लोगों से दो गज दूरी।
अपनायें एकांत वास , कर्फ्यू का सन्देश। रुके वायरस संचरण ,दे उत्तम सन्देश।।-[75]
अर्थ : कोरोना के संचरण को रोकने के लिए कर्फ्यू का भी सहारा लिया गया जिससे लोग एक दूसरे से दूरी बनाये रखें और वायरस का संचरण रुके।
कोरोना का नाम सुनि , बाल वृद्ध भयभीत। भय से घर में जा छिपे ,गायें प्रभु के गीत।।-[76]
अर्थ : आज कोरोना का नाम सुनकर बच्चे -बूढ़े सभी भयभीत हैं और घर में रहकर बचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं।
कोरोना की आज तक , नहि कोई वैक्सीन। सब लोग बेचैन दिखें ,ज्यों पानी बिनु मीन।।-[77]
अर्थ : आज तक कोरोना वायरस से बचने के लिए कोई वैक्सीन विश्व में उपलब्ध नहीं है। कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन के अभाव में लोग उसी तरह बेचैन हैं जैसे पानी के आभाव में मछली बेचैन होती है।
कोरोना ने कर दिया ,हर किसी को अछूत। विश्व में आज बढ़ गया ,हर जगह छुआ छूत।।-[78]
अर्थ : कोरोना का एक वैश्विक प्रभाव यह पड़ा कि लोगों में हाथ मिलाने की परम्परा से लोगों ने परहेज किया और भारतीय संस्कृति की अभिवादन शैली नमस्ते का वैश्विक प्रचलन बढ़ा। कहने तात्पर्य है कि विश्व में लोगों ने एक दूसरे से दूरी बनाये रखने के लिए ही अभिवादन की भारतीय शैली नमस्ते को सहर्ष अपनाया।
याचना
याचक खड़ा बजार में,मांगे सबसे भीख। हर कोई मुंह फेरै ,नाहीं देता भीख।।-[79]
अर्थ : भीख मांगना सभी कामों में निकृष्ट समझा जाता है लेकिन याचक ठहरा उसे भीख मांगने में कोई लज्जा नहीं आती। वह याचक बहुत बड़ी आशा के साथ हर किसी के सामने अपना हाथ फैला देता है लेकिन भिखारी को देख कर लोग अपना मुंह फेर लेते हैं इस प्रकार से भिखारी की झोली खाली ही बानी रहती है।
ऐ भिखारी तू सुन ले ,जा उस दाता पास। जिसकी झोली है भरी ,न याचक हो निरास।।-[80]
अर्थ : जब भिखारी भीख मांगते मांगते निराश हो जाता है तब अचानक ही उसे एक ईश्वरीय सन्देश मिलता है कि ओ भिखारी ध्यान से सुनो हर किसी के सम्मुख हाथ मत फैलाओ क्योंकि हर आदमी के पास सीमित धन है। तू उस दाता (परमात्मा ) के सम्मुख हाथ क्यों नहीं फैलाता जिसकी झोली कभी खाली ही नहीं होती और उस दाता (परमात्मा ) से मांगने पर कोई याचक निराश भी नहीं होता।
नौकरशाह
जनतंत्री नौकरशाह ,दलगत देखा जाय। सत्ता हो प्रतिकूल यदि ,काम टालता जाय।।-[81]
अर्थ :लोकतंत्रीय शासन में लोक सेवक भी विभिन्न राजनीतिक दलों में निष्ठा रखते हैं यदि लोक सेवक के प्रतिकूल राजनीतिक दल का शासन है तो लोकसेवक काम को टालता है या धीमी गति से काम करता है।
हर नौकरशाह पकड़े , इक खम्भा मजबूत। कौन विधी शासन चले,कौन कील ताबूत।।-[82]
अर्थ : यदि लोकसेवक की शिकायत भी होती है तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि वह लोक सेवक सत्ता दल के किसी न किसी मजबूत नेता से निकटता रखता है। आख़िरकार शासन के कार्य में रफ़्तार कैसे आये। भ्रष्ट अधिकारी को दंड कैसे मिले। ढीली प्रशासनिक मशीनरी में पेंच कैसे कसे जाय और कौन कसे। यह कार्य तो ताबूत में कील गाड़ने के सामान हुआ।
सुख
वशीभूत न लालच के ,निंदा से हो दूर। ताहि जीवन सदा सुखी ,खुशियों से भरपूर।।-83]
अर्थ : इस संसार में वही व्यक्ति सुखी है जिसमें किसी प्रकार का लालच न हो। न किसी की निंदा करता हो और न ही किसी की निंदा सुनता हो तथा न ही अपनी निंदा सुनकर परेशान होता हो। ऐसे व्यक्ति का जीवन सदा सुखी एवं खुशहाल रहता है।
भविष्य चिंता छोड़ दे ,भूतहि देय विसार। वर्तमान संभाल ले ,सुखी होय संसार।।-[84]
अर्थ: इस संसार में वही व्यक्ति सुखी है जो भूतकाल को भुलाकर, भविष्य की चिंता छोड़ देता है तथा वर्तमान को संभाल लेता है।
खुशबू
फूल खुशबू साथ पवन ,पवन बहे जिस ओर। प्रतिभा खुशबू खुद बहे ,फैले चारो ओर।।-[85]
अर्थ : पुष्प की खुशबू वायु के सहारे ,वायु की दिशा की ओर बहती है परन्तु प्रतिभा की खुशबू स्वयं अपने आप बिना किसी के सहारे चारो ओर फैलती है।
कर्ज
पैसे दिये उधार हों ,मांगो बिनु संकोच। डूब जाये सारा धन ,यदि होगा संकोच।।-[86]
अर्थ ; यदि पैसे उधार दिए हों या अन्य तरीके से जैसे व्यापार आदि में पैसे उधार हो जाय तो बिना किसी संकोच के पैसे मांगिये अन्यथा उधार का पैसा डूब जायेगा।
धन उधार सदा उसको ,दिखता हो गुणवान। अवगुणी करै न वापस ,धनहि पाइ धनवान।।-[87]
अर्थ : पैसे सदैव ऐसे व्यक्ति को उधार दें जो गुणवान हो। अवगुणी के हाथ में गया उधार का धन कभी भी वापस नहीं होता वह तो पराये धन से ही धनी होना चाहता है।
वारिधि देय उधार जल ,देख मेघ गुणवान। घन बरसे वारि वापस ,सिंधु सदा धनवान।।-[88]
अर्थ : सागर मेघ के गुणों से प्रभावित होकर ही वाष्प के रूप में अपना जल उधार देता है। मेघों की ईमानदारी देखिये कि मेघ वर्षा कर सागर से लिया गया उधार जल सागर में पहुंचा देते हैं। मेघों द्वारा उधार लिया गया जल सागर में पुनः पहुँचने से सागर सदा धनवान बना रहता है।
शर्म
व्यापार होय या काम ,शर्म पास नहि होय। उसकी सदैव तरक्की , यह जानत सब कोय।।-[89]
अर्थ : जीवन में उसी व्यक्ति की उन्नति होती है जिस व्यक्ति में व्यापार या काम करने में कोई शर्म न हो।
अशिक्षा
अशिक्षित बालक होय यदि ,मातु पितु शत्रु समान। विद्वानों मध्य ऐसे ,हंस मध्य वक जान।।-[90]
अर्थ : ऐसे माता -पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के सामान हैं जिनके बालक अशिक्षित हैं। अशिक्षित व्यक्ति विद्वानों के मध्य उसी प्रकार सुशोभित होते है जैसे हंसों के मध्य बगुला।
चिंता
पत्नी से वियोग होय, अपनों से अपमान। गरीबी होय साथ में, अग्नि बिनु भस्म जान।।-[91]
अर्थ : यदि किसी व्यक्ति को पत्नी का वियोग हो ,अपने लोगों से अपमान मिले तथा आर्थिक स्थिति जर्जर हो तो ऐसा व्यक्ति बिना अग्नि के ही चिंता में जल कर भस्म हो जाता है।
सफलता
विश्वास होय कर्म में, साहस मन में होय। ताहि सफलता जानिये , राखि योजना गोय।।-[92]
अर्थ : उसी व्यक्ति को सदैव सफलता मिलती है जिसके काम की योजना गोपनीय , काम करने के लिए मन में साहस एवं विश्वास हो।
धीरे धीरे काम करु ,धीरे सब कुछ होय। धीरे धीरे कोयला, इक दिन हीरा होय।।-[93]
अर्थ : जिस प्रकार भूमि के अंदर पड़ा हुआ कोयला धीरे धीरे हीरे में परिवर्तित हो जाता है ठीक उसी प्रकार व्यक्ति को हर कार्य धैर्य पूर्वक धीरे धीरे करना चाहिए जिसमें सफलता मिलना सुनिश्चित है।
दुर्जन
विषधर तभी है डसता ,जानहि जोखिम जानि। दुर्जन सदा हि घात में ,पग पग देवै हानि।।-94]
अर्थ: विषैला सर्प तब तक किसी को नहीं काटता जब तक उसकी (सर्प) जान को खतरा न हो लेकिन दुष्ट लोग सदैव इस घात में रहते हैं कि कब हम अमुक व्यक्ति को हानि पहुंचाएं अर्थात दुष्ट लोग कदम कदम पर आप को हानि पहुँचाने के लिए सदैव ही प्रयत्नशील रहते हैं।
पतन
तटिनी तट पर होइ तरु ,विपक्ष रहित जनतंत्र । लाल कहें दोनो मिटै , तरू और जनतंत्र ।।-[95]
अर्थ :कवि का निश्चित मत है कि नदी के तट पर खड़ा वृक्ष नदी के तेज प्रवाह की धारा से कभी भी गिर कर नष्ट हो सकता है तथा लोकतंत्रीय देश में विपक्ष रहित जनतंत्र का पतन शीघ्र सुनिश्चित है।
कमजोरी
मत करो प्रदर्शन ताहि ,जो कमजोरी होय। नहि छोड़े अहि फुसकार ,भले विषहीन होय।।-[96]
अर्थ : जिस प्रकार से नाग के दांत तोड़ने पर नाग विषहीन हो जाता है अर्थात नाग शक्ति में कमजोर हो जाता है लेकिन नाग अपने बचाव में फुसकार मारना नहीं छोड़ता। उसी प्रकार व्यक्ति को कभी भी अपनी कमजोरी प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। उसे अपने बचाव के लिए विषहीन सर्प की तरह व्यवहार करना चाहिए।
समर्थन
मत करो समर्थन ताहि ,गलत करे जो काम। दूरी राखि सदा रहो , उधार देय न दाम।।-[97]
अर्थ: कवि सन्देश देता है कि ऐसे व्यक्तियों से सदा दूरी बनाकर रहें जो गलत काम करते हों और न ही ऐसे गलत काम करने वालों का समर्थन ही करना चाहिए एवं ऐसे लोगों को धन भी उधार नहीं देना चाहिए।
धैर्य
सिंधु तोड़े मर्यादा ,प्रलय भयंकर काल। सज्जन सदा अडिग रहे ,विपत भयंकर काल।।-[98]
अर्थ : भयंकर प्रलय काल में सागर अपनी मर्यादा तोड़कर तट बन्ध तोड़ देता है लेकिन सज्जन पुरुष भयंकर आपत्ति काल में भी अडिग रहते हैं।
लक्ष्य
लक्ष्य केंद्रित होये यदि ,जैसे राखे शेर। पूर्ण सफलता पाइये ,जैसे पाए शेर।।-[99]
अर्थ : यदि किसी व्यक्ति का अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित है तो निश्चित ही उसे उसी प्रकार सफलता मिलती है जिस प्रकार से एक शेर अपने शिकार का लक्ष्य बना कर शिकार प्राप्त कर लेता है।
शत्रु
भ्रष्ट भार्या साजन शत्रु ,कृपणहि याचक मान। मूर्खहि रिपु ज्ञानी सदा ,चोर चन्द्रमा जान।।-[100]
अर्थ : दुष्ट चरित्र की पत्नी का शत्रु उसका पति है क्योंकि पति उसे गलत काम करने से रोकता है। भिखारी का शत्रु कंजूस व्यक्ति है क्योंकि कंजूस व्यक्ति को भिक्षा देते में कष्ट होता है। मूर्ख व्यक्ति के लिए उपदेशक (ज्ञानी ) शत्रु है क्योंकि मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अडिग रहता है उसे किसी व्यक्ति का ज्ञान पसंद नहीं और चोर व्यक्ति का शत्रु चन्द्रमा है क्योंकि चोर को चांदनी रात्रि में पकड़े जाने या पहिचाने जाने का भय रहता है।
© अशर्फी लाल मिश्र (Asharfi Lal Mishra) e-mail:asharfilalmishra@gmail.com **समाप्त **
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वाह !लाजवाब दोहे सराहना से परे आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 9 नवंबर 2020 को 'उड़ीं किसी की धज्जियाँ बढ़ी किसी की शान' (चर्चा अंक- 3880) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार।
हटाएंवाह, बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंजीवन से जुड़े शानदार दोहे !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंसार्थक दोहों से अलंकृत रचनाएँ मुग्ध करती हैं, साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं। आपको जितना भी धन्यवाद कहा जाए कम है। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंसभी दोहों को आप के द्वारा पढ़ा जाना ही मेरा सौभाग्य है।बहुत बहुत हृदय से आभार।
हटाएंसभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं। आपको जितना भी धन्यवाद कहा जाए कम है। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंसार गर्भित टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर सभी दोहे इक से बढ़कर इक
जवाब देंहटाएंसाधुवाद। धन्यवाद।
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