रविवार, 20 मार्च 2022

कवि कुछ ऐसा करिये गान

 --अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र







कवि कुछ ऐसा करिये गान,

 होये  मानवता   का   मान।

दानवता   सिर   उठा   रही,

मानवता  है   सिसक   रही।।


छाए हैं परमाणु  के  बादल,

कवि कुछ  ऐसी हवा बदल।

उड़    जाएं    सारे    बादल,

ठंढी    हो    जाये   हलचल।।


कवि ऐसा अवसर कब होगा?

मानवता का सिर ऊंचा होगा।

दानवता  नत   मस्तक  होगी,

मानवता  की  इज्जत   होगी।।

-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर।©







14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच     "कवि कुछ ऐसा करिये गान"  (चर्चा-अंक 4378)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. उत्तर
    1. सुंदर टिप्पणी के लिए Anita जी बहुत बहुत आभार।

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  3. कवि कुछ ऐसा करिए गान ...
    सौ बात की एक बात !
    कवि का कहा कौन सुनता है ?
    बहरहाल नींद से जगा सकता है.

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  4. छाए हैं परमाणु के बादल,
    कवि कुछ ऐसी हवा बदल।
    उड़ जाएं सारे बादल,
    ठंढी हो जाये हलचल.. वाह!बहुत खूब कहा सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. कवि ही अपनी कविता से मानवता को जगाये
    बहुत सुन्दर सृजन
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. छाए हैं परमाणु के बादल,

    कवि कुछ ऐसी हवा बदल।

    उड़ जाएं सारे बादल,

    ठंढी हो जाये हलचल।।
    यूक्रेन के हालत देख यही आशंका रुह कंपा देती है…सुन्दर रचना.

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  7. कवि कुछ ऐसी हवा बदल।
    उड़ जाएं सारे बादल,
    ठंढी हो जाये हलचल.. वाह!बहुत खूब 👍

    जवाब देंहटाएं

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