शनिवार, 20 अप्रैल 2024

विप्र सुदामा - 40

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)






नाथ  प्रभु  कृपा जब होये,

क्षण में  छप्पर महल होये। 

प्रभु कृपा  से  मिला महल, 

अब तो नाथ पधारो  महल।।


प्रिये तुम्हें मुबारक भव्य महल,

हमें  प्रिय  लागे  छप्पर छानी।

बच्चों संग  प्रिये  रहो महल में,

हम फिर छा लेंगे  छप्पर छानी।।


वह सुख नाही भव्य महल में,

प्रिये जो सुख छप्पर छानी में।

महल में  नाही  बसैं त्रिलोकी,

सदा  साथ  रहें  मेरी छानी में।।


प्रिये यह महल किराये जैसा,

उसे  कैसे कहूँ अपना महल।

या फिर कहूँ   उपकृत महल,

इसे  कैसे   कहूँ  निज  महल।।


प्रिये पराये धन को अपना कहूँ,

यह ब्राह्मण धर्म का अंग नहीं।

हम हैं स्वाभिमानी ब्राह्मण प्रिये,

उपकृत महल हमें स्वीकार नहीं।।

रचनाकार एवं लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

4 टिप्‍पणियां:

विप्र सुदामा - 42

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