-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
द्वारपाल पूंछहि सुदामा,
कैसे आये राजा के द्वार।
हम सुदामा स्वाभिमानी,
लालच नाही मेरे हिये।।
कान्हा हमारे हैं सहपाठी,
पढ़ते उज्जयिनी साथ साथ।
गुरु संदीपनि आश्रम में,
शिक्षा पाई साथ साथ।।
मन में जागी प्रीति मिलन,
इस सोच से द्वारिका आया।
जाकर कह दो कान्हा से,
विप्र सुदामा है आया।।
द्वारपाल ने जाना जब,
विप्र राजा का सहपाठी।
बार बार कर रहा दण्डवत,
बार बार मांगे माफी।।
अभी तक सुदामा थे खड़े,
अब बैठे सादर आसन।
द्वारपाल उस ओर दौड़ा,
जँह कृष्ण बैठे सिंहासन।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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