--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
निन्दित कर्म करता जो, अरु पाछे पछताय।
ऐसी बुद्धि कर्म पूर्व, दौलत घर में आय ।।1।।
जाको प्रिय मीठा वचन, ताही सों प्रिय बोल।
मृगहि हनन को व्याध भी, गावै मधुर अमोल।।2।।
अग्नि गुरु राजा नारी, मध्यावस्था सेय।
निकट होये विनाश भय, दूरहि फल नहि देय।।3।।
ऊँचे आसन से नहीं, गुण से उत्तम जान।
मन्दिर शिखर पर कागा, नाहीं गरुड़ समान।।4।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
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