शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

विप्र सुदामा - 64

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943---)







माखन चोरी दृश्य जब देखा,

मातु यशोदा  में खोये मुरारी।

भानु लली संग बांसुरी वादन,

रास लीला में खो गये मुरारी।।


बहुत काल  इक टक देखा,

बचपन में अब खोये मुरारी।

सुशीला कह  रही कर जोड़े,

किस सोच में डूबे हो मुरारी।।


नाथ आप  का  यह महल,

आप के  चित्रों से शोभित।

क्या  कोई  चित्र अवांछित,

अप्रिय हटाऊँ तुरन्त अभी।।


नहीं देवि सुशीला ऐसा नहीं,

हर चित्र की है अपनी खूबी।

देखो सम्मुख  चित्र द्वार पर,

बाल  सखी मेरे  उर में डूबी।।


कहौ  देवि  हम कैसे भूलें,

कैसे  भूलें  मातु   यशोदा।

अरु कैसे  भूलें भानु लली,

जो उर में रहती सदा सदा।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

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