बुधवार, 8 जनवरी 2025

विप्र सुदामा - 59

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







अब कान्हा रथ से भूमि पर।

यह  पुरी  सुदामा सीमा थी।

पुण्य भूमि थी मीत विप्र की,

कर्म भूमि विप्र  सुदामा  थी।।


कान्हा ने अब रथ त्याग दिया,

नमन  किया पावन भूमि को।

उस पुण्य भूमि की रज लेकर,

कह रहे  धन्य  उस  भूमि  को।।


पैदल चल रहे अब नगरी में।

विविध भाव  मन  में उमड़े।।

धीरे धीरे बढ़ रहे थे पथ पर,

बीच  बीच में हो  जायें खड़े।।


कानों में गूंजे एक ही बात,

अकेले मिलता पुण्य नहीं।

वीतरागी  के  पुण्य   दर्शन,

अकेले  अकेले  पुण्य नहीँ।।


कान्हा  बढ़ते   दो  कदम,

फिर   एक   कदम   पीछे।

कानों में  बोली भामा की,

अकेले मिलता पुण्य नहीं।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

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