रविवार, 5 जनवरी 2025

विप्र सुदामा - 58

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र,, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)









अचानक पहुँचे जब कान्हा,

द्वारपाल अति था भयभीत।

थे स्वयं सारथी  कान्हा अब,

द्वारपाल  अति देख चकित।।


द्वारिकाधीश सम्मुख देख,

द्ण्डवत कर रहा बार बार।

राजन  के  इक  संकेत  से,

खोल दिया था मुख्य द्वार।।


कान्हा  रथ के  अश्व सभी,

चल  पड़े पवन की गति से,

अकेले रथ पर  कान्हा देख,

सीमा प्रहरी अब चिंतित से।।


पथ  गुजर रहा बीहड़ से,

कान्हा रथ  था  दौड़ रहा।

इसी बीच आ गई तटिनी,

रथ तरणि सम पार हुआ।।


रथ दौड़ रहा पवन गति से,

अचानक अश्व कदम रुके।

चाबुक पर चाबुक चल रहे,

घोड़ों ने बढ़ाया कदम नहीँ।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।©


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